सोमवार, फ़रवरी 15, 2021

प्रेम

प्रेम
***
लड़कों की जीन्स के जेब में
तितिर-बितिर रखा 
लड़कियों की 
चुन्नी के छोर में 
करीने से बंधा 

दूल्हे की पगड़ी में 
कलगी के साथ खुसा
सुहागन की
काली मोतियों के बीच में फंसा
धडकते दिलों का
बीज मंत्र है प्रेम 

फूलों की सुगंध
भंवरों की जान
बसंत की मादकता
पतझर में ठूंठ सा है प्रेम 

जंगली जड़ी बूटियों का रसायन
झाड़ फूंक और सम्मोहन
के ताबीज में बंद
सूखे रोग की दवा है प्रेम 

फुटबॉल जैसा
एक गोल से
दूसरे गोल की तरफ 
जाता है
बच्चों की तरह 
उचका दिया जाता है 
आकाश की तरफ
गोद में गिरते ही
खिलखिलाने लगता है  
दरकी जमीन पर 
कोमल हरी घास
की तरह 
अंकुरित होता है  

खाली बोतलों सा लुढ़कता 
बिस्किट की तरह
चाय में डूबता
पाउच में बंद
पान की दुकान में बिकता 
च्यूइंगम की तरह
घंटों चबाया जाता है प्रेम

माँ बाप की
दवाई वाली पर्ची में लिखा
फटी जेबों में रखा रखा
भटकता रहता है प्रेम 

और अंत में
पचड़े की पुड़िया में लपेटकर 
डस्टबिन में 
फेंक दिया जाता है प्रेम---

"ज्योति खरे"

14 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम को विविध उपमानों से परिभाषित करती अत्यन्त सुन्दर रचना ।

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  2. और अंत में
    पचड़े की पुड़िया में लपेटकर
    डस्टबिन में
    फेंक दिया जाता है प्रेम---
    ...सुन्दर प्रसंगों से परिभाषित करने के साथ इन पंक्तियों ने प्रेम की सत्यता को निरूपित कर दिया..

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. वाह!निशब्द हूँ सर।
    लाजवाब प्रेम का जीवन चित्रण।
    सादर

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  5. चौंकाने वाला है यह प्रेम का रूप । अति सुन्दर ।

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  6. बहुत खूब लिखा है, प्रेम के विभिन्न प्रकार और रंग देखने को मिले आपकी इस रचना में ,अब प्रेम को परिभाषित करना, समझना आसान नहीं है , लाजवाब, नमन

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  7. गहन भाव समेटे यह पंक्तियां ...बहुत ही बढि़या अभिव्‍यक्ति ।

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