वृद्धाश्रम में होली
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बूढ़े दरख्तों में
अपने पांव में खड़े रहने की
जब तक ताकत थी
टहनियों में भरकर रंग
चमकाते रहे पत्तियां और फूल
मौसम के मक्कार रवैयों ने
जब से टहनियों को
तोड़ना शुरू किया है
समय रंगहीन हो गया
रंगहीन होते इस समय में
सुख के चमकीले रंगों से
डरे बूढ़े दरख़्त
कटने की पीड़ा को
मुठ्ठी में बांधें
टहलते रहते हैं
वृद्धाश्रम की
सुखी घास पर
इसबार
बूढ़े दरख्तों के चिपके गालों पर
चिंतित माथों पर
लगाना है गुलाल
खिलाना है स्नेह से पगी खुरमी
मुस्कान से भरी गुझिया
एक दिन
हमें भी बूढ़े होना है---
"ज्योति खरे"
वाह।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंठीक कहा आपने आदरणीय ज्योति जी ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार २७ मार्च २०२१ को शाम ५ बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
सही..
जवाब देंहटाएंसटीक..
आभार..
सादर...
आभार आपका
हटाएंवाह! अद्भुत ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंहोना तो चाहिए ऐसा ही लेकिंकैसे पैदा हो इतनी संवेदना । जब खुद के बच्चे भुला देते अपने ही मां बाप को ।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव
आभार आपका
हटाएंइस बार बुढ़े दरखतो के गालों पर, चिंतीत माथों लगाना है गुलाल... बहुत खूब, ये नेक काम करके हम उन्हें तो सुख देगे ही, हमें भी शुकून मिलेगा, बेहद प्यारी रचना आदरणीय सर, आप को भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंनिर्वाक !!! हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआ0 सत्य को दिखाता सटीक सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंप्रभावशाली लेखन - - होली की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसटीक सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवृद्धावस्था की व्यथा को इस अभिव्यक्ति ने जुबां दी है। होली हो या दीवाली, बूढ़े दरख्त अपनी बहारों के मौसम को याद तो करते ही होंगे। कोरोना ने वृद्धों का जीवन और भी दूभर कर दिया है। वे कहीं जा नहीं सकते, कोई उनके पास आ नहीं सकता।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत खूब प्रस्तुति, होली की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसही है
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर संवेदनशील रचना...होली की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसंवेदनशील रचना...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंआज के वर्तमान परिस्थितियों पर बिल्कुल सटीक रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत बहुत प्रशंसनीय सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसच कहा है बूढ़ा तो हमें भी होना है ... चिंता आज करने की ज़रूरत है ... लाजवाब रचना है ...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर , अनायास आँखें नम कर जाती ये रचना | यकायक जीवन में अप्रासंगिक हो जाना और जीवन का सफर वृद्धाश्रम में जाकर रुकना ! हम भूल जाते हैं हम भी एक -एक पग धरकर इसी व्यवस्था की ओर अग्रसर हैं | मार्मिक रचना जो जीवन की दारुणता का दहला देने वाला जीवंत चित्र उपस्थित करती है | सादर
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