प्रेम के गणित में
*************
गांव के
इकलौते
तालाब के किनारे बैठकर
जब तुम मेरा नाम लेकर
फेंकते थे कंकड़
पानी की हिलोरों के संग
डूब जाया करती थी
मैं
बहुत गहरे तक
तुम्हारे साथ
तुम्हारे भीतर ----
सहेजकर रखे
खतों को पढ़कर
हिसाब-किताब करते समय
कहते थे
तुम्हारी तरह
चंदन से महकते हैं
तुम्हारे शब्द ----
आज जब
यथार्थ की जमीन पर
ध्यान की मुद्रा में
बैठती हूं तो
शून्य में
लापता हो जाते हैं
प्रेम के सारे अहसास
प्रेम के गणित में
कितने कमजोर थे
अपन दोनों ----
"ज्योति खरे"
आह ... ज्योति जी ... गज़ब ही लिखा है ... भीतर तक डूबना ,,, चन्दन जैसा महकना कितने प्यारे एहसास ...
जवाब देंहटाएंऔर यथार्थ में कहाँ ला कर ख़त्म की अपनी बात कि प्रेम का गणित समझ नहीं पाए ...
गहन अनुभूति से लिखी रचना ...
आभार आपका
हटाएंब्शुत खूब आदरणीय सर | आपकी रचनाएँ अनोखी और उनमें प्रेम की अभिव्यक्ति भी अद्भुत | अबोध प्रेम जब यथार्थ के धरातल पर पटक कर गिरता होगा तो कदाचित यही आह निकलती होगी भीतर से --
जवाब देंहटाएंप्रेम के गणित में
कितने कमजोर थे
अपन दोनों ----
बहुत ही मार्मिक रचना जो बताती है किताबी गणित से प्रेम का गणित बहुत मुश्किल है -- |
आभार आपका
हटाएंआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 5 अप्रैल 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभार आपका
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 05-04 -2021 ) को 'गिरना ज़रूरी नहीं,सोचें सभी' (चर्चा अंक-4027) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर् और सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
आभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंलाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर और यथार्थपरक रचना। प्रेम की इंद्रधनुषी कल्पनाओं से बाहर आते ही जब वास्तविकता के कठोर तप्त धरातल पर कदम पड़ते हैं तो मन जलकर यही कह उठता है -
जवाब देंहटाएंप्रेम के गणित में
कितने कमजोर थे
अपन दोनों ----
आभार आपका
हटाएंप्रेम में आकंठ डूबे मन को हिसाब किताब कहाँ.समझ आता है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
प्रणाम।
सादर।
वाह ज्योति जी, क्या खूब लिखा....सहेजकर रखे
जवाब देंहटाएंखतों को पढ़कर
हिसाब-किताब करते समय
कहते थे
तुम्हारी तरह
चंदन से महकते हैं
तुम्हारे शब्द ----ये शब्द ही तो हैं जो... बहुत खूब
बहुत सुंदरता से प्रेम,पर के अहसास और प्रेम की परिणति का वर्णन,एक एक शब्द अंदर तक समाहित हो गया , सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंअनछुई अनुभूति । बहुत ही सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंप्रेम की गहराई में आकंठ डूबी अभिव्यक्ति, बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह 👌
जवाब देंहटाएंवाह 👌
जवाब देंहटाएंवाह 👌
जवाब देंहटाएंवाह 👌
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना आदरणीय ज्योति खरे सर। कभी-कभी आप उत्कृष्टता के शिखर पर होते हैं, यह वही क्षण है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन एहसास जो यूं बदलते हैं वाह।
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना,पूरी रचना ही खूबसूरत है, ढेरों बधाई हो सादर नमन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
जवाब देंहटाएं