लड़कियां
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फुटपाथ पर
बेचती है
पालक,मैथी और लाल भाजी
यह वह
अपनी जमीन के
छोटे से टुकड़े में बोती है
उसके पास ही
बेचती है एक लड़की
अदरक,लहसुन और हरी मिर्च
यह वह आढ़त से खरीदती है
दोनों
अपनी अपनी साइकिलों में
बोरियां बांधकर
पास के गांव से आती हैं
शाम को दुकान समेटने के बाद
खरीदती हैं
घर के लिए
जरूरत का सामान
दोनों
घर पहुंचने के पहले
एक जगह खड़े होकर
बांटती हैं
अपने अपने दुख
कल मिलने का वादा कर
लौट आती हैं
अपने अपने घर
सुबह
फिर मिलती हैं
आती हैं बाजार
संघर्षों के गाल पर
चांटा मारने----
"ज्योति खरे"
संघर्षों के गाल पर बहुत बढ़िया तमाचा मारती हैं लडकियाँ!सुन्दर सृजन के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंयथार्थ को समक्ष रख दिया है ।बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएं"इन्हीं संघर्षों के चाँटे की मार से सहमते हैं दुःख और ज़िंदगी मुस्कुराकर कहती है तुम कभी नहीं हार सकती।"
जवाब देंहटाएंयथार्थ वादी सृजन सर।
प्रणाम
सादर।
आभार आपका
हटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंमहिला दिवस क अवसर पर सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअग्रज आभार आपका
हटाएंमहिला दिवस पर, यथार्थ को बेधती सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 08 -03 -2021 ) को 'आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक- 3999) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत आभार आपका
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबेहतरीन सृजन,सादर नमन सर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंज्योति जी प्रणाम, विश्व महिला दिवस पर आपने बहुत खूबसूरत कहा...कि
जवाब देंहटाएंसुबह
फिर मिलती हैं
आती हैं बाजार
संघर्षों के गाल पर
चांटा मारने..वाह
आभार आपका
हटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंजीवन का आईना दिखाती, संघर्षो से जूझती हुई कहानी को कम शब्दों में बयां कर दिया आपने , सारा सार अंतिम पंक्तियों में उतर आया, बहुत खूब, नमस्कार शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआशावादी सृजन
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लेखन - - शुभ कामनाओं सह।
जवाब देंहटाएंबेहद उत्कृष्ट सृजन, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय भावनात्मक रचना
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