शनिवार, मार्च 06, 2021

लड़कियां

लड़कियां
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फुटपाथ पर
बेचती है
पालक,मैथी और लाल भाजी
यह वह 
अपनी जमीन के 
छोटे से टुकड़े में बोती है
उसके पास ही 
बेचती है एक लड़की
अदरक,लहसुन और हरी मिर्च
यह वह आढ़त से खरीदती है
दोनों 
अपनी अपनी साइकिलों में
बोरियां बांधकर
पास के गांव से आती हैं

शाम को दुकान समेटने के बाद
खरीदती हैं
घर के लिए 
जरूरत का सामान

दोनों
घर पहुंचने के पहले
एक जगह खड़े होकर
बांटती हैं
अपने अपने दुख

कल मिलने का वादा कर
लौट आती हैं
अपने अपने घर 

सुबह 
फिर मिलती हैं
आती हैं बाजार
संघर्षों के गाल पर
चांटा मारने----

"ज्योति खरे"

29 टिप्‍पणियां:

  1. संघर्षों के गाल पर बहुत बढ़िया तमाचा मारती हैं लडकियाँ!सुन्दर सृजन के लिए आपको बधाई।

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  2. यथार्थ को समक्ष रख दिया है ।बेहतरीन रचना

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  3. "इन्हीं संघर्षों के चाँटे की मार से सहमते हैं दुःख और ज़िंदगी मुस्कुराकर कहती है तुम कभी नहीं हार सकती।"
    यथार्थ वादी सृजन सर।
    प्रणाम
    सादर।

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  4. महिला दिवस पर, यथार्थ को बेधती सुंदर रचना..

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 08 -03 -2021 ) को 'आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक- 3999) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  6. बेहतरीन सृजन,सादर नमन सर

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  7. ज्योत‍ि जी प्रणाम, विश्व महिला दिवस पर आपने बहुत खूबसूरत कहा...क‍ि
    सुबह
    फिर मिलती हैं
    आती हैं बाजार
    संघर्षों के गाल पर
    चांटा मारने..वाह

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  8. जीवन का आईना दिखाती, संघर्षो से जूझती हुई कहानी को कम शब्दों में बयां कर दिया आपने , सारा सार अंतिम पंक्तियों में उतर आया, बहुत खूब, नमस्कार शुभ प्रभात

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