फूल
****
मैं
किसकी जमीन पर
अंकुरित हुआ
किस रंग में खिला
कौन से धर्म का हूं
क्या जात है मेरी
किस नाम से पुकारा जाता हूं
मुझे नहीं मालूम
मुझे तो सिर्फ इतना मालूम है
कि,छोटी सी क्यारी में
खिला एक फूल हूं
जिसे तोड़कर
अपने हिसाब से
इस्तेमाल करने के बाद
कचरे के ढेर में
फेंक दिया जाता है----
"ज्योति खरे"
लाजवाब सृजन हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंगहन भाव कम शब्दों में।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन सर।
प्रणाम।
आभार आपका
हटाएंगहरी बात बड़े ही मासूम अंदाज में कह गए सर। आपके अनुभव व पारखी नजर को नमन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंहर परिदृश्य को शब्दों में बाँधना,वो भी भावपूर्ण..बहुत ख़ूब..
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंमासूम लोग दुनिया को बहुत कुछ देते हैं पर दुनिया बड़ी बेदर्दी से उन्हें प्रयोग कर धुल में मिला देती है| यही फूल के साथ भी होता है | मासूम सा आत्मकथ्य पुष्प का , जो उसकी अनकही व्यथा कहता है | सादर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंगहन भाव लिए सुन्दर सृजन सर .
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंक्या बात है ! अति सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंऔर यह भी मालूम है कि छोटे से जीवन में बहुत सी खुशियाँ बिखेरता हूँ . गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंमूक जीव इंसानो से बेहतर होते है ,ये भेदभाव के मतलब से अंजान होते है ,बहुत ही सुंदर रचना, बधाई हो
जवाब देंहटाएंलाजवाब लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं