मंगलवार, मई 04, 2021

लोरियां सुनाने

बीनकर लाती है
जंगल से
कुछ सपने
कुछ रिश्ते
कुछ लकड़ियां

टांग देती है
खूटी पर सपने
सहेजकर रखती है आले में
बिखरे रिश्ते
डिभरी की टिमटिमाहट मेँ
टटोलती है स्मृतियां

बीनकर लायी हुई लकड़ियों से
फिर जलाती है
विश्वास का चूल्हा
कि,कोई आयेगा
और कहेगा

अम्मा
तुम्हें लेने आया हूं
घर चलो

बच्चों को लोरियां सुनाने---

 "ज्योति खरे"

12 टिप्‍पणियां:

  1. गाँवों में छूटे हुए बुजुर्गों की व्यथा दर्शाती मार्मिक रचना...

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  2. आपने बहुत ही कम शब्दों अम्मा की पूरी व्यथा को रख दिया है। बेहद ही भावपूर्ण रचना है। अंतिम पंक्तियों ने तो आंखों की दशा ही बदल दी। वाकई बहुत ही बेहतरीन रचना है....आसान भाषा में लिखी हुई एक सार्थक रचना। इस रचना की सबसे बड़ी खासियत है कि यह रोज की बोलचाल की भाषा में लिखी हुई है। सच में मुझे यह बहुत बढ़िया लगा। आपको और पढ़ने की मुझमें ललक बढ गयी है।

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  3. ममत्व के बहुत सुंदर भावों से भरी रचना।

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  4. कोई भूला हुआ घर लौट आए और अम्मा को उसका संसार मिल जाए, सुंदर रचना

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  5. माँ को अपनी औलादों से हमेशा आशा ही लगी रहती है। वृद्धावस्था में अकेली रहनेवाली माँ की व्यथा कोई आँक नहीं सकता परंतु इन पंक्तियों ने उस पीड़ा को सजीव कर दिया -
    फिर जलाती है
    विश्वास का चूल्हा
    कि,कोई आयेगा
    और कहेगा - अम्मा
    तुम्हें लेने आया हूं
    घर चलो
    बच्चों को लोरियां सुनाने---

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  6. गागर में सागर जैसा उद्गार मर्मस्पर्शी सृजन।
    सादर ।

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