डूबते सूरज को
उठा लाया हूं
तुम्हें सौंपने
कि अभी बाकी है
घुप्प अंधेरों से लड़ना
कि अभी बाकी है
नफरतों की चादरों से ढंकी
प्रेम के ख़िलाफ़ हो रही
साजिशों का
पर्दाफाश करना
काली करतूतों की
काली किताब का
ख़ाक होना
कि अभी बाकी है
लड़कियों का
उजली सलवार कमीज़ पहनकर
दिलेरी से
नंगों की नंगई को
चीरते निकल जाना
कि अभी बाकी है
धरती पर
स्त्री की सुंदरता का
सुनहरी किरणों से
सुनहरी व्याख्या लिखना
कि अभी बहुत कुछ बाकी ना रहे
इसलिए
तुम्हारी लहराती चुन्नी में
रख रहा हूं सूरज
मुझे मालूम है
तुम फेर कर
प्रेममयी उंगलियां
बस्तियों की हर चौखट पर
भेजती रहोगी
सुबह का सवेरा
और
सूरज से कहोगी
कि दिलेरी से ऊगो
मैं तुम्हारे साथ हूँ
स्त्री के कारण ही
जीवित होता है
नया सृजन
कायम रहती है दुनियां
क्योंकि स्त्री
अपनी चुन्नी में
बांधकर रखती है हरदम
निःस्वार्थ प्रेम -----
◆ज्योति खरे
वाह लाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आभार आपका
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबिल्कुल... निःस्वार्थ प्रेम तो होता ही है।
जवाब देंहटाएंआपने स्त्री की सृजन भूमिका को बखूबी ढंग से इस रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया।
सराहनीय।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंहर एक लाइन बहुत खूबसूरती से लिखी है आपने
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंस्त्री के कारण ही
जवाब देंहटाएंजीवित होता है
नया सृजन
कायम रहती है दुनियां
क्योंकि स्त्री
अपनी चुन्नी में
बांधकर रखती है हरदम
निःस्वार्थ प्रेम -----बहुत गहरी रचना है
आभार आपका
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवाह ..... कितनी गहराई है आपकी इस रचना में । नारी के प्रति आपकी भावनाओं का मन से सम्मान ।
जवाब देंहटाएंआपने जो कहा, ठीक कहा।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंमुझे मालूम है
जवाब देंहटाएंतुम फेर कर
प्रेममयी उंगलियां
बस्तियों की हर चौखट पर
भेजती रहोगी
सुबह का सवेरा
लाजवाब सृजन !
बहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंस्त्री को सहज सुंदर सम्मान देती बहुत ही अर्थपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंThis is really fantastic website list and I have bookmark you site to come again and again. Thank you so much for sharing this with us.
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स्त्री के लिए प्रेम और सम्मान से परिपूर्ण रचना. इस सुन्दर सृजन के लिए बधाई आपको.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंगणेश भजन लिरिक्स
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