सोमवार, अगस्त 09, 2021

आदिवासी लड़कियां

आदिवासी लड़कियां
****************
भिनसारे उठते ही 
फेरती हैं जब
घास पर 
गुदना गुदी
स्नेहमयी हथेलियां
उनींदी  घास भी
हो जाती है तरोताजा 
लोकगीत गुनगुनाने की
आवाज़ सुनते ही
घोंसलों से पंख फटकारती
निकल आती हैं चिड़ियां
टहनियों पर बैठकर
इनसे बतियाने

मन ही मन मुस्कराती हैं 
बाडी में लगी
भटकटैया,छुईमुई,कुंदरू
नाचने लगती हैं
घास पूस से बनी
बेजान गुड़ियां 
जलने को मचलने लगता है 
मिट्टी का रंगीन चूल्हा
जिसे ये बचपन में
खरीद कर लायीं थी 
चंडी के
हाट बाजार से

इनकी गिलट की 
पायलों की आहट सुनकर
सचेत हो जाता है 
आले में रखा शीशा
वह जानता है
शीशे के सामने ही खड़ी होकर 
ये आदिवासी लड़कियां
अपने होने के अस्तित्व को
सजते सवंरते समय
स्वीकारती हैं

इनके होने और इनके अस्तित्व के कारण 
युद्ध तो आदिकाल से 
हो रहा है
लेकिन
जीत तो
इन्हीं लड़कियों की ही होगी 
ठीक वैसे ही , जैसे 
काँटों के बीच से
रक्तिम आभा लिए
निकलती हैं
गुलाब की पंखुड़ियां-----

◆ज्योति खरे

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 10 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. आदिवासी लड़कियों का खूबसूरत शब्दचित्र खींचा है । जीत तो इनकी ही होगी 👌👌👌👌👌बहुत सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर बिंबों से सुसज्जित
    बेहद सारगर्भित शब्द चित्र सर।
    बेहतरीन सृजन।

    प्रणाम सर
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदिवासी लड़कियों को बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने आदरणीय सर,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं