गुरुवार, जुलाई 22, 2021

साड़ी की प्लेट

साड़ी की प्लेट
***********
हाँथ की लकीरों को
जब से पढ़वाकर लौटी है
काले बादलों को भेदकर
उड़ने लगी है
कल्पनाओं के 
सातवें 
आसमान में 
उसे लगने लगा है कि
माथे पर उभरी
सलवटों पर
जब वह  
उंगलियों से छुएगा 
सलवटें सिकुड़कर
जमीन पर गिर जाएंगी
 
वह अक्सर 
अपने भीतर उभरी छवि पर
फेरने लगी उंगलियां
ठीक वैसे ही
जैसे कल्पनाओं में
उसने फेरी थी
माथे पर

सलवटें सुलझने लगी  
और जिंदा होने लगी     
पहेलियां
कि कब चुपके से 
मेरे होठों की सरसराहट में 
बन रही सलवटों को
वह अपने होंठों की 
सलवटों में सम्मलित करेगा

वह हवा में उड़ती हुई 
सोच रही थी
कि,कब कोई
मदमस्त पंछी 
मुझसे टकरायगा
घुसकर मेरी धड़कनों में
फड़फड़ायेगा

वह महसूस करने लगी
अपनी ठंडी साँसों में
उसकी साँसों की गर्माहट

वह नहीं उड़ पायी 
ज्यादा दिनों तक आसमान में
काट गए पर
और वह 
फड़फड़ाकर गिर पड़ी
जीवन के मौजूदा घर में 
माथे की सलवटे
साड़ी की प्लेट से
लिपट गयी
जिसे वह अपने हिस्से की
सलवटें समझकर 
सुबह शाम 
सुधारती है------

◆ज्योति खरे

13 टिप्‍पणियां:

  1. एक स्त्री के जीवन का शब्द चित्र ।
    ज़िम्मेदारियों के बोझ तले साड़ी की ही प्लेट्स संभालती राह गयी । सब कल्पना धराशाही हो गयी ।
    अद्भुत बिम्ब लास्ट हैं हर बार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. "माथे की सलवटे
    साड़ी की प्लेट से
    लिपट गयी
    जिसे वह अपने हिस्से की
    सलवटें समझकर
    सुबह शाम
    सुधारती है------" - हर बार की तरह ऐसी अनूठी बिम्बों से लबरेज़, संवेदनशील विषय को सजीव शब्दों से उकेरने वाले चितेरे रचनाकार .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब अनुपम अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  5. हाँथ की लकीरों को
    जब से पढ़वाकर लौटी है
    काले बादलों को भेदकर
    उड़ने लगी है
    कल्पनाओं के
    सातवें
    आसमान में
    कल्पनाओं का आसमान है ही इतना अद्भुत कि बार बार गिरकर भी फिर फिर उड़ने की हिम्मत आजती है
    बहुत ही लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं
  6. वह नहीं उड़ पायी
    ज्यादा दिनों तक आसमान में
    काट गए पर
    और वह
    फड़फड़ाकर गिर पड़ी
    जीवन के मौजूदा घर में
    माथे की सलवटे
    साड़ी की प्लेट से
    लिपट गयी
    जिसे वह अपने हिस्से की
    सलवटें समझकर
    सुबह शाम
    सुधारती है------
    बहुत ही भावनात्मक और हृदय स्पर्शी रचना!

    जवाब देंहटाएं
  7. एकदम सच है - उड़ान भी, उम्मीद भी, और मौजूदा जीवन का घर भी।

    जवाब देंहटाएं