जब से तुमने
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जब से तुमने
लहरों की तरह
उसके भीतर
मचलना शुरू किया
वह
समुंदर हो गया
जब से तुमने
इशारे से बुलाकर
उसके कान में कहा
तुम मेरे दोस्त हो
वह
मैं बोलने लगा
सुनने भी लगा
जब से तुमने
उसकी उंगलियों को
अपनी उंगलियों में
फसाकर
साथ चलने को कहा
वह
अपरिचितों की भीड़ में
परिचित होने लगा
जब से तुमने
सबके सामने
उसको गले लगाया
वह
साधारण आदमी से
विशेष आदमी बन गया----
◆ज्योति खरे
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभार आपका
हटाएंलाजवाब। लम्बे समयन्तराल पर।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्कृष्ट सृजन।
आभार आपका
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (१८-०२ -२०२२ ) को
'भाग्य'(चर्चा अंक-४३४४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आभार आपका
हटाएंबहुत ही प्यारी और मनमोहक प्रस्तुति आदरणीय सर 👌👌। प्रेम के कई सोपानों से गुजरते हुए एक आम इंसान को विशेष बना ही देता है। भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏🌷🌷
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवाह अद्भुत रचना!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर आपके ब्लॉक का नाम पढ़ कर मुझे एक रचना सूझ रही है जल्द ही लिखुंगी और अपने ब्लॉग पर रचना प्रकाशित करूंगी!
आभार आपका
हटाएंजब से तुमने...हर मन को प्रेरणा देती सुंदर,सराहनीय अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंफेसबुक पर पढ़ी थी आपकी यह रचना ।
जवाब देंहटाएंआपके विशेष होने की बधाई ।
सुंदर भाव पिरोए हैं ।
आभार आपका
हटाएंवाह!अद्भुत!
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंउम्दा प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना सर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
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