सोमवार, फ़रवरी 21, 2022

प्यार मैं ही, मैं करूं

प्यार मैं ही, मैं करूं
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मन-मधुर वातावरण में
प्यार बाँटें
प्यार कर लें

दु:ख अपने पांव पर
जो खड़ा था,
अब दौड़ता है
हर तराशे सुख के पीछे
कोई पत्थर तोड़ता है

आओ करें हम
नव सृजन-
एक मूरत और गढ़ लें

'प्यारे', 
प्यार मैं ही मैं करूं
और तुम कुछ ना करो
कैसे बंधाऊं आस मन को
तुम 'न' करो, न 'हाँ' करो!

रतजगे-सी जिन्दगी में
हम कहाँ से
नींद भर लें----

लंबा सफ़र है 
हम सभी का
हम मुसाफिर हैं सभी
दौड़ते हैं, हांफते हैं 
या बैठते हैं हम कभी

यह सिलसिला है राह का,
प्यार से 
कुछ बात कर लें-----

"ज्योति खरे"

21 टिप्‍पणियां:

  1. मनुहार भरी हर पंक्ति बहुत अच्छी लगी।
    बहुत सुंदर सृजन सर।
    प्रणाम
    सादर।

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  2. आओ करें हम
    नव सृजन-
    एक मूरत और गढ़ लें
    मन मुग्ध करती बहुत ही खूबसूरत रचना आदरणीय सर!
    सादर!

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-2-22) को "प्यार मैं ही, मैं करूं"(चर्चा अंक 4348)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. लंबा सफ़र है
    हम सभी का
    हम मुसाफिर हैं सभी
    दौड़ते हैं, हांफते हैं
    या बैठते हैं हम कभी,,,,,, बहुत सुंदर रचना,जीवन का आईना है आपकी लिखी। पंक्तियाँ

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  5. समरसता का भाव लिए लाजवाब सृजन ।

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  6. आओ करें हम
    नव सृजन-
    एक मूरत और गढ़ लें

    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  7. लंबा सफ़र है
    हम सभी का
    हम मुसाफिर हैं सभी
    दौड़ते हैं, हांफते हैं
    या बैठते हैं हम कभी।
    सार्थक सृजन।
    अप्रतिम।

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