युद्ध की कहानियां
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लिखी जा रही हैं
संवेदनाओं की पीठ पर
युद्ध की कहानियां
झुंझलाते, झल्लाते
वातावरण में
बांटा जा रहा है
डिस्पोजल ग्लास में पानी
पीने वालों को
हर घूंट कड़वा लग रहा है
लेकिन फिर भी पी रहें हैं
घूंट घूंट पानी
जश्न या मातम के दौरान
सुनाई जाती हैं
या गढ़ी जाती हैं
विद्रोह की कहानियां
ऐसे समय में
पड़ती है पानी की ज़रूरत
क्योंकि
सदमें में
चीख चिल्लाहट में
सूख जाता है गला
विभाजित खेमों को
हालात का अंदाज़ा नहीं है
कि,दहशतज़दा लोग
सफेद चादरों पर बैठे
सिसक रहे हैं
कि,कब कोई जानी पहचानी लाश
आंख के सामने से न गुजर जाए
काश!
युद्ध की
कहानियां सुनते समय
किसी के
कराहने की
आवाज न सुनाई दे-----
◆ज्योति खरे
इन सब के बीच भी वाहवाही लूटने की कवायद जारी है। सटीक चित्रण।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंबढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंकाश कि लोग समझ पाते
जवाब देंहटाएंयुद्ध की कहानियाँ नहीं होती
होती है कुछ ऐसी निशानियाँ
जो समय के साथ मिटती नहीं
और गहरी हो जाती है
तभी तो...
हर बार जब भी
युद्ध को कहानियों की तरह
दोहराया जाता है
मलबे में दबा इतिहास
प्रश्न पुस्तिका के साथ
उपस्थित हो जाता है ...।
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भावपूर्ण विचार मंथन सर।
प्रणाम
सर।
सार्थक और सच्चाई से व्यक्त की गई प्रतिक्रिया
हटाएंआभार आपका
दिल को छूती हुई बहुत ही मार्मिक रचना!
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -०२ -२०२२ ) को
'का पर करूँ लेखन कि पाठक मोरा आन्हर !..'( चर्चा अंक -४३५५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
युद्ध की कहानियाँ
जवाब देंहटाएंसुनते सब हैं
लेकिन गुनता
कोई नहीं
तभी तो ये युद्ध
खत्म नहीं होते
और न ही
खत्म होती है
वर्चस्व की लड़ाई
अपने अपने स्वार्थ
और लाशों के ढेर
नहीं सुनते
राजनायिक
किसी की कराह भी ।
बहुत मर्मस्पर्शी रचना ।
बहुत अच्छी बात कही है आपने
हटाएंआभार
काश! कोई युद्ध हो ही नहीं और न ही बनायी जाए कोई कहानी। हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंविभाजित खेमों को
जवाब देंहटाएंहालात का अंदाज़ा नहीं है
कि,दहशतज़दा लोग
सफेद चादरों पर बैठे
सिसक रहे हैं
कि,कब कोई जानी पहचानी लाश
आंख के सामने से न गुजर जाए
.. युद्ध से विनाश किसे सुहाता है परंतु वर्चस्व की लड़ाई में इंसान युद्ध से भी नहीं चूकता । बहुत सराहनीय और हृदयस्पर्शी सृजन ।
काश!
जवाब देंहटाएंयुद्ध की
कहानियां सुनते समय
किसी के
कराहने की
आवाज न सुनाई दे-----
या फिर उन्हें भी सुनाई दे जो युद्ध करने के लिए इतने उतावले होते हैं....शायद सुनकर उनकी मानवता जाग जाये
बहुत ही हृदयस्पर्शी सामयिक सृजन।
काश यह सब ना हो सुंदर दिन आएँ
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंयथार्थ का सटीक चित्र , हृदय स्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंकाश ! कि युद्ध की कहानियाँ या कविताएँ कहने सुनने का अवसर ही ना आता कभी.....
जवाब देंहटाएंमन को छुन वाली रचना ।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद के पात्र