किस्से सुनाने
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बारूद में लिपटी
जीवन की किताब को
पढ़ते समय
गुजरना पड़ता है
पढ़ने की जद्दोज़हद से
दहशतजदा दीवारों में
जंग लगी
खिड़कियों को बंद कर
देखना पड़ता है
छत की तरफ़
नींद में चौंककर
रोना पड़ता है
बच्चों की तरह
पत्थर में बंधे
तैरते समय को
डूबने से बचाने
फड़फड़ाना पड़ता है
कि कहीं डूब न जाए
रेगिस्तानी नदी में
अपने वजन से भी ज्यादा
किताबें उठाकर
जंगली दुनियां से निकलकर
भागना चाहता हूं
गिट्टियों की शक्ल में
टूट रहे पहाड़ों के बीच
उन्हें
किताबों में लिखे
सच्ची मुच्ची के
किस्से सुनाने---
◆ज्योति खरे
बारूद में लिपटी
जवाब देंहटाएंजीवन की किताब को
पढ़ते समय
गुजरना पड़ता है
पढ़ने की जद्दोज़हद से
जीवन की राहें आसान कर देती हैं किताबें । बहुत सुन्दर सृजन ।
आभार आपका
हटाएंलाज़वाब
जवाब देंहटाएंपत्थर में बंधे
जवाब देंहटाएंतैरते समय को
डूबने से बचाने
फड़फड़ाना पड़ता है
कि कहीं डूब न जाए
रेगिस्तानी नदी में... वाह!गज़ब कहा सर।
सादर
शानदार रचना...
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंबारूद में लिपटी
जवाब देंहटाएंजीवन की किताब को
पढ़ते समय
गुजरना पड़ता है
पढ़ने की जद्दोज़हद से
बहुत खूब सर, लाजवाब सृजन,सादर नमस्कार 🙏
आभार आपका
हटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंजीवन के गहरे यथार्थ का सजीव चित्रण, सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंवाह वाह वाह!क्या बात है
जवाब देंहटाएंआभार आपका
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