मजदूर
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सपनों की साँसें
सीने में
बायीं ओर झिल्ली में बंद हैं
जो कहीं गिरवी नहीं रखी
न ही बिकी हैं,
नामुमकिन है इनका बिकना
गर्म,सख्त,श्रम समर्पित हथेलियों में
खुशकिस्मती की रेखाएं नहीं हैं
लेकिन ये जो हथेलियां हैं न !
इसमें उंगलियां हैं
पर पोर नहीं
सीधी-सपाट हैं
नाख़ून पैने
नोचने-फाड़ने का दम रखते हैं
पैरों की एड़ियां कटी-फटी,तलवे कड़े
घुटने,पंजे,पिडलियां कठोर
पांव जो महानगरीय सड़कों पर
सुविधा से नहीं चल पाए
राजपथ में
दौड़ने का साहस रखते हैं
छाती में विशाल हृदय
मजबूत फेफड़ा है
जिसकी झिल्ली में बंद हैं
सपनों की साँसे
इन्हीं साँसों के बल
कल जीतने की लड़ाई जारी है
और जीत की संभावनाओं पर
टिके रहने का दमखम है
क्योंकि,
इन्हीं साँसों की ताकत में बसा है
मजदूर की
खुशहाल ज़िन्दगी का सपना----
◆ज्योति खरे
मजदूर दिवस जिंदाबाद
बेहतरीन रचना सर
जवाब देंहटाएंलाजवाब हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंहृदय को बिंधता सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
आभार आपका
हटाएं
जवाब देंहटाएंपैरों की एड़ियां कटी-फटी,तलवे कड़े
घुटने,पंजे,पिडलियां कठोर
पांव जो महानगरीय सड़कों पर
सुविधा से नहीं चल पाए
राजपथ में
दौड़ने का साहस रखते हैं..
कितना सख्त यथार्थ लिखते हैं, चिंतन करने को मजबूर करती रचना ।
लाजवाब सृजन के लिए बधाई आपको
आभार आपका
हटाएंहमारे चिकने घड़े जैसे देश-संचालकों पर मज़दूर-किसान की बदहाली-बेबसी का कोई असर नहीं होता.
जवाब देंहटाएंजिस दिन सर्वहारा वर्ग ने क्रान्ति का बिगुल बजा दिया उस दिन अमीर-गरीब का फ़र्क मिट जाएगा.
आ ज्योति खरे जी, मजदूरों के आत्मसम्मान को प्रतिबिंबित करती बहुत अच्छी रचना! ये पंक्तियां अच्छी लगीं:
जवाब देंहटाएंपांव जो महानगरीय सड़कों पर
सुविधा से नहीं चल पाए
राजपथ में
दौड़ने का साहस रखते हैं
साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
आभार आपका
हटाएंबेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति सर....
जवाब देंहटाएंउनकी सपनों की साँसें
सींचती हैं
सभ्यताओं की नींव
जिसपर टिके हैं
इतिहास के भव्य
संग्रहालय।।।
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प्रणाम सर
सादर।
आभार आपका
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