गुरुवार, मई 05, 2022

कैसी हो फरज़ाना

कैसी हो "फरज़ाना"
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अक्सर 
बगीचे में बैठकर
करते थे
घर,परिवार की बातें
टटोलते थे
एक दूसरे के दिलों में बसा प्रेम

आज उसी बगीचे में
अकेले बैठकर
लिख रहा हूं
धूप के माथे पर
गुजरे समय का सच

जब तुम
हरसिंगार के पेड़ के नीचे 
चीप के टुकड़े पर
बैठ जाया करती थी
मैं भी बैठ जाता था
तुम्हारे करीब
और निकालता था
तुम्हारे बालों से
फंसे हुए हरसिंगार के फूल
इस बहाने
छू लेता था तुम्हें
डूब जाता था
तुम्हारी आंखों के
मीठे पानी में

एक दिन
लाठी तलवार भांजती
भीड़ ने
खदेड़ दिया था हमें
उसके बाद
हम कभी नहीं मिले

अब तो हर तरफ से 
खदेड़ा जा रहा है प्रेम
सूख गयी है 
बगीचे की घास
काट दिया गया है
हरसिंगार का पेड़ 

उम्मीद तो यही है
कि, दहशतज़दा समय को
ठेंगा दिखाता
एक दिन फिर बैठेगा 
बगीचे की हरी घास पर प्रेम
फिर झरेंगे हरसिंगार के फूल

तुम भी इसी तरह की
दुआ मांगती होगी
कि, कब
धूप और लुभान का
धुआं 
जहरीले वातावरण को
सुगंधित करेगा

कैसी हो फरज़ाना
इसी बगीचे में 
फिर से मिलो
एक दूसरे की बैचेनियां
फिर से 
साझा करेंगे---

◆ज्योति खरे

22 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०६-०५-२०२२ ) को
    'बहते पानी सा मन !'(चर्चा अंक-४४२१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. आज उसी बगीचे में
    अकेले बैठकर
    लिख रहा हूं
    धूप के माथे पर
    गुजरे समय का सच..... वाह! अद्भुत!!!

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  4. मज़हब की दीवार प्रेम की धार को भले ही रोक ले, प्रेम तो ना कभी रुका है ना रुकेगा।
    हृदयस्पर्शी सृजन,सादर नमन सर

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  5. अद्भुत!!!!!!!!
    इसे मैं पढ़ते-पढ़ते कहीं खो गया....

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  6. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति आदरनीय सर! प्रेम धर्म और जाति के बंध तोडकर निर्बाध बहता है।पर इस तरह वर्जित प्रेम को दुनिया के प्रचण्ड विरोध का सदैव ही सामना करना पड़ता है पर प्रेमियों की आत्मा इस कटु सत्य को नकारती इसकी छाया में बैठने से बाज़ नहीं आती।बेहद उम्दा काव्य चित्र।👌👌आपको भी ईद मुबारक हो 🙏🙏🌺🌺

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  8. गोपेश मोहन जैसवाल7 मई 2022 को 11:03 am बजे

    पुराने ज़माने में फरज़ाना और ज्योति का प्यार परवान चढ़ सकता था पर आज इसको लेकर टीवी पर डिबेट्स हो सकती हैं, दंगे हो सकते हैं और इसे चुनावी मुद्दा बनाया जा सकता है.
    बेहतर है कि फरज़ाना और ज्योति एक-दूसरे से दूर-दूर ही रहें.

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  9. प्रेम को कोई एक निश्चित सीमा में नहीं बांध सकता है, लेकिन आज बहुधा प्रेम दिल की गहराई से कहाँ फरेब रूप में ज्यादा मिलता है, फिर भी प्रेम है तो ये जहाँ है, वर्ना कब की खत्म हो गई होती दुनिया
    बहुत अच्छी रचना है

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  10. प्रेम की सुखद अनुभूति का सुंदर वर्णन। संवाद शैली में अद्भुत काव्य ।

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