गुरुवार, जून 02, 2022

तपती गर्मी जेठ मास में

अनजाने ही मिले अचानक 
एक दोपहरी जेठ मास में 
खड़े रहे हम बरगद नीचे 
तपती गरमी जेठ मास में-

प्यास प्यार की लगी हुयी
होंठ मांगते पीना 
सरकी चुनरी ने पोंछा 
बहता हुआ पसीना 

रूप सांवला हवा छू रही 
बेला महकी जेठ मास में--

बोली अनबोली आंखें 
पता मांगती घर का 
लिखा धूप में उंगली से 
ह्रदय देर तक धड़का 

कोलतार की सड़कों पर   
राहें पिघली जेठ मास में---   

स्मृतियों के उजले वादे 
सुबह-सुबह ही आते 
भरे जलाशय शाम तलक 
मन के सूखे जाते 

आशाओं के बाग खिले जब  
यादें टपकी जेठ मास में-----

"ज्योति खरे"

22 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जेठ मास में भी इतनी प्यारी यादें टपक रहीं ।
    सुंदर भावपूर्ण रचना ।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2022) को चर्चा मंच      "दो जून की रोटी"   (चर्चा अंक- 4450)  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  4. वाह वाह!सुंदर सामयिक सृजन

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण कृति ।

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  6. स्मृतियों के उजले वादे
    सुबह-सुबह ही आते
    भरे जलाशय शाम तलक
    मन के सूखे जाते

    आशाओं के बाग खिले जब
    यादें टपकी जेठ मास में-----
    वाह!!!
    जेठ मास में पसीने संग इतनी खूबसूरत यादें टपकी हैं...
    बहुत ही सुन्दर... लाजवाब।

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  7. स्मृतियों के उजले वादे
    सुबह-सुबह ही आते
    भरे जलाशय शाम तलक
    मन के सूखे जाते

    आशाओं के बाग खिले जब
    यादें टपकी जेठ मास में--- जेठ मास का अद्भुत चित्रांकन ।

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  8. जेठ मास में बहुत उम्दा अभिव्यक्ति आदरणीय सर ।

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  9. वाह ! जलते तपते जेठ मास में भी एक खूबसूरती हो सकती है परंतु उसे देखने समझने के लिए कवि का हृदय सबके पास कहाँ होता है !!!

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