प्रेम को नमी से बचाने
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धुओं के छल्लों को छोड़ता
मुट्ठी में आकाश पकड़े
छाती में
जीने का अंदाज बांधें
चलता रहा
अनजान रास्तों पर
रास्ते में
प्रेम के कराहने की
आवाज़ सुनी
रुका
दरवाजा खटखटाया
प्रेम का गीत बाँचा
जब तक बाँचा
जब तक
प्रेम उठकर खड़ा नहीं हुआ
गले लगाया
थपथपाया
और उसे संग लेकर चल पड़ा
शहर की संकरी गलियों में
दोनों की देह में जमें
प्रेम को
बरसती गरजती बरसात
बहा कर
सड़क पर न ले आये
तो खोल ली छतरी
खींचकर पकड़ ली
उसकी बाहं
और निकल पड़े
प्रेम को नमी से बचाने
ताकि संबंधों में
नहीं लगे फफूंद---
◆ज्योति खरे
लाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंअप्रतिम भावों को संजोए लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंनिकल पड़े
जवाब देंहटाएंप्रेम को नमी से बचाने
ताकि संबंधों में
नहीं लगे फफूंद---
..सुंदर भावप्रवण रचना ।
और निकल पड़े
जवाब देंहटाएंप्रेम को नमी से बचाने
ताकि संबंधों में
नहीं लगे फफूंद---
वाह! गहरे भाव समेटे लाजवाब सृजन आदरणीय सर 🙏
लाजवाब । बहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंप्रेम को नमी से बचाने...
लाजवाब सृजन।
अँचार हो या रिश्ते...बिना केयर के फफूँद लगनी स्वाभाविक है...👍
जवाब देंहटाएंलाजवाब लेखन सर
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति
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