शनिवार, अक्टूबर 08, 2022

शरद का चाँद

शरद का चाँद
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ख़ामोशी तोड़ो
सजधज के बाहर निकलो
उसी नुक्कड़ पर मिलो
जहाँ कभी बोऐ थे हमने
चांदनी रात में
आँखों से रिश्ते 

और हाँ !
बांधकर जरूर लाना
अपने दुपट्टे में
वही पुराने दिन
दोपहर की महुआ वाली छांव
रातों के कुंवारे रतजगे
आंखों में तैरते सपने
जिन्हें पकड़ने
डूबते उतराते थे अपन दोनों 

मैं भी बाँध लाऊंगा
तुम्हारे दिये हुये रुमाल में
एक दूसरे को दिये हुए वचन
कोचिंग की कच्ची कॉपी का
वह पन्ना
जिसमें
पहली बार लगायी
लिपिस्टिक लगे तुम्हारे होंठों के निशान
आज भी
ज्यों के त्यों बने हैं
 
क्योंकि अब भी तुम
मेरे लिए
शरद का चाँद हो------

◆ज्योति खरे

12 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (9-10-22} को "सोने में मत समय गँवाओ"(चर्चा अंक-4576) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. वाह.. बेहद दिलकश काव्य चित्र।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सर।
    सादर।

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आदरनीय सर।आसमान के चाँद के बहाने से अपने चाँद का महिमा गान।बहुत सुन्दर है ये शरद पूनम का शशि नवल👌👌👌👌👌🙏

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  4. दीपावली की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति व अनुपम रचना।

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  5. बहुत मीठी और दिलकश रूमानी यादें !
    अजनबी बनने के एक अर्से बाद फिर से दोस्ती करने की चाहत !

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  6. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति आदरणीय ज्योति सर।एक बार फिर से पढ़कर अच्छा लगा 🙏

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