सांप के कान नहीं होते
हम बेमतलब
जिरह की बीन
बजाने पर तुले हैं
सांप दूध नहीं पीते
हम बेमतलब
कटोरी भर
दूध पिलाने पर तुले हैं
सांप के पांव नहीं होते
हम बेमतलब
सांप के पीछे
भागने पर तुले हैं
माना कि
कर्ज की सुपारी में लपेटकर
भेजी जा रही है
जहरीली फुफकार
हम बेमतलब
जहर उतारने पर तुले हैं
किराये के सपेरों को
घूमने दो
गांव की गलियों में
शहर की सड़कों में
हम बेमतलब
अपने घर के सामने
उनकी पूजा करने पर तुले हैं
गांव हमारे
शहर हमारे
घाटियां हमारी
वादियां हमारी
नदियां हमारी
मौसम हमारे
फिर बेमतलब क्यों डरें
जब हम
जहरीले सापों को
खदेड़ने पर तुले हैं--
◆ज्योति खरे
अद्भुत| आप कहां थे ? बहुत दिनों के बाद ले के आये तीर तरकश के ?
जवाब देंहटाएंभाई जी अस्वस्थ चल रहा था,अब पटरी पर लौटा हूं
हटाएंआभार आपका
ख्याल रखिये | शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंअप्रतिम ! शुभकामनाएं 🙏
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंआपकी बात में सत्य का तत्व है।
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