सोमवार, अगस्त 21, 2023

बेमतलब

सांप के कान नहीं होते
हम बेमतलब
जिरह की बीन
बजाने पर तुले हैं

सांप दूध नहीं पीते
हम बेमतलब
कटोरी भर
दूध पिलाने पर तुले हैं

सांप के पांव नहीं होते
हम बेमतलब
सांप के पीछे
भागने पर तुले हैं

माना कि
कर्ज की सुपारी में लपेटकर
भेजी जा रही है
जहरीली फुफकार
हम बेमतलब
जहर उतारने पर तुले हैं

किराये के सपेरों को
घूमने दो
गांव की गलियों में
शहर की सड़कों में
हम बेमतलब
अपने घर के सामने 
उनकी पूजा करने पर तुले हैं

गांव हमारे
शहर हमारे
घाटियां हमारी
वादियां हमारी
नदियां हमारी
मौसम हमारे

फिर बेमतलब क्यों डरें
जब हम 
जहरीले सापों को
खदेड़ने पर तुले हैं--

◆ज्योति खरे

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