खेल तो हम कभी भी खेल लेंगे
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जीत और हार की संभावनाओं के साथ
पान पराग, विमल, राजश्री, के पाऊच और गोल्डफ्लेग सिगरेट के पैकेट लिए
जहां चाय सुलभता से मिल जाए
इसकी चुस्कियों लेने
अपने अपने अड्डों पर
विराजमान हो जाते हैं
सभ्य समाज के
सभ्य लोग
ऐसी जगहों पर
मासूम बच्चे
टेबल पर पोंछा मारते
खाली कप ग्लास उठाते
अक्सर मिल जाते हैं--
इन दिनों
आई पी एल का क्रेज है
यह माँ बाप और रिश्तों को भी
नहीं समझता है
यहीं पर
मासूम बच्चे
गिरते विकटों के साथ
चौके, छक्कों के साथ
खाते रहते हैं
मां-बहन की गालियां
और अपनी मासूमियत
का परिचय देते
पेट भरने के इंतजाम में
पोंछते रहते हैं टेबल
खाली करते रहते हैं
एशट्रे
समय मिलते ही
कनखियों से
स्क्रीन पर देखती मासूम आंखे
बल्ले और बाल पर नहीं
चिप्स,चॉकलेट,मैगी,कामप्लेन
पर ठहर जाती हैं
बालमन के भीतर
घुटती
भविष्य की संभावनाओं को
मां बहन की गालियां
भिंगो जाती हैं
हार और जीत की
जश्न की
तैयारियों में लगे लोग
मेकडावल, रॉयलचेलेंज, टीचर,सिग्नेचर
प्लेन,मसाला के
इंतजाम के साथ
पंडाल में बैठकर
असफलता, सफलता का राग
दो घूंट चढ़ाने के बाद
गुनगुनाने लगते हैं
टेबल पोंछते बच्चों की
मासूम घुटन को
नहीं पहचानते
मां बहन की गालियों देकर
इन्हें अपना यार समझते हैं
टेबल पोंछते इन बच्चों की
मासुमियत को समझने
कोई भी राष्ट्रीय प्रतियोगता
नहीं होती
खेेल तो हम कभी भी खेल लेंगे
पहले
इन मासूम बच्चों की
मासूमियत को
चौके,छ्क्के में
तबदील करें
मासूम जीवन को जीतने का
खेल
जल्दी से
प्रारंभ करवाओ
इस खेल में
आम आदमी
सम्मलित होना चाहता है--
"ज्योति खरे"
4 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर लाजवाब बेहतरीन कविता लंबी जरूर है लेकिन यथार्थ के धरातल पर बिल्कुल सच्चाई को बयां कर रही है
मासूम जीवन को जीतने का
खेल
जल्दी से
प्रारंभ करवाओ
इस खेल में
आम आदमी
सम्मलित होना चाहता है--
बहुत ही मर्मस्पर्शी बात लिखी आपने| तंगहाली से गुजरता अबोध बचपन और आईपीएल के बीच एक सुंदर और सार्थक सृजन आदरनीय ज्योति जी | सादर शुभकामनायें |
लोक तंत्र कहते हैं तंत्र रह गया है किसी ओर लोक का
खेल आम आदमी के लिये बस जपने का मंत्र हो गया है।
बहुत सुन्दर।
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 47वीं पुण्यतिथि - मीना कुमारी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
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