मंगलवार, जून 02, 2020

फिरोजी चुन्नी

बहुत देर से अंकिता दीवाल पर छिपकली के रेंगने और चालाकी से कीड़े को पकड़ने का संघर्ष देख रही है. छिपकली की आंखें कितनी तेज और खतरनाक होती हैं, कीड़े का साहस और बचने का तरीका भी तो किसी खतरनाक खिलाड़ी से कम नहीं होता है.
यकायक छिपकली कीड़े को पकड़ते पकड़ते अंकिता के सामने पट्ट से गिर पड़ी, वह सहम सी गयी और उसके चेहरे पर घबड़ाहट की लकीरें खिंच आयीं. वह जब तक संयत होती छिपकली दीवाल पर फिर से रेंगने लगी.
ड्राईग रुम के चुप्पी भरे माहौल में बिलकुल अकेली अंकिता सोफे पर एक गहरी सांस लेते हुए बैठ गयी, ऐसा नहीं है कि वह पहली बार अकेली है, उसे तो दो बरस हो गये हैं इस शहर में अकले रहते हुए और अपने कमरे में छिपकली और कीड़ो के संघर्ष को देखते हुए.
यह संघर्ष सिर्फ छिपकली और कीड़ो का नहीं हैं, इस तरह का संघर्ष उसका अपना भी तो रहा है, कम उम्र में मां बाप का गुजर जाना, बड़े भाई का विवाह करके बदल जाना जिस मोहल्ले में रहती थी वहां लोगों के ताने कि पढ़ती ही रहेगी या कभी विवाह करेगी, वह कैसे समझाती कि भाई  को मेरी चिंता हो तब न विवाह हो, यहां तो भाई को पड़ी है कि यह घर से कब भाग जाए.अनगिनत परेशानियों से जूझते, अपमान का चांटा सहते पढ़ाई पूरी की, बुरे समय के दौर से निकलकर सुख का रास्ता तय करने के लिए.
लेकिन आज भी अपने आप से ऐसा ही लड़ रही है, जैसा छिपकली और  कीड़े लड़ते हैं.
इस नीरस और उलझे माहौल में केवल अंकिता की सांसों की आवाज आ रही है.
वह सोफे से उठकर खिड़की के पास चली आयी, बाहर देखा सड़क पर सन्नाटों का अहसास पसरा पड़ा है.
यह वही सड़क है जिस पर चलकर वह अपना शहर छोडकर यहां प्राईवेट कालेज में पढ़ाने आयी है.
अंकिता रोज कालेज जाती और लौट आती , उसके दिमाग में यह बात हमेशा घूमती रहती है कि ,क्या सोचकर नौकरी स्वीकारी थी और क्या हो रहा है.
वह यह इस नौकरी में अपने को व्यस्त रखना चाहती थी और मन में दबी अपनी चित्रकला को कागज में उकेर कर फिर से रंग भरना चाहती है, लेकिन पुरानी यादें उसे परेशान  किए हुए हैं, कुछ नया करने का मन ही नहीं होता.
" सब बकवास है " वह बुदबुदाते हुए खिड़की पर रखी कुहनी को साफ करते हुए सोफे पर बैठ गयी.
आज अविनाश आने वाला है, परसों उसका फोन आया था, वह क्यों आ रहा है मेरे लाख पूछने पर उसने  नहीं बताया बस बातों को घुमाता रहा.
वह आम टिपिकल लड़कों से कुछ अलग ही सोच का लड़का है, हम दोनों कालेज में साथ पढ़ते थे. मजाक मजाक में बहुत गहरी बातें किया करता था लेकिन भीतर से बहुत गंभीर रहता, ऐसा मुझे महसूस होता था, मुझे उससे बात करना बहुत अच्छा लगता था, शायद उसे भी मुझसे बात करना अच्छा लगता हो, तभी तो वह मेरे बनाये चित्रों को गंभीरता से देखता था और अपनी राय भी देता था. यह वह दौर था जब हम दोनों कालेज से छूटने के बाद पास वाले बगीचे में बैठकर ढेर सारी बातें किया करते थे.वह अक्सर मुझसे पूछता था कि "तुम्हें कौन सा रंग पसंद है" मैं कई रंग बताती थी वह खीझ जाता, कहता "कोई एक रंग बताओ" 
स्मृतियां आकाश में बहुत महीन धागो से टंगी तारो जैसी होती हैं जो कभी टूटकर नहीं गिरती.
अविनाश के आने से अंकिता बहुत खुश, पर भीतर ही भीतर खीझ भी रही है, जब दो बरस से उसने मेरी कोई खबर नहीं ली, फिर अब क्यों आ रहा है.
वह उससे लड़ने का पूरा मूड बना चुकी है.
अंकिता किचन से चाय बनाकर ले आयी और चुसकियां लेते फिर से सोचने लगी और खिलखिलाकर हंसने लगी, काश! उन दिनों मैंने अपने भीतर पनपती प्रेम की झुरझुरी को मन में दबाया न होता, 
कुछ ईशारा तो किया होता, मैंने तो उससे यह भी कभी नहीं बताया कि मुझे फिरोजी रंग पसंद है.
अविनाश ने भी तो कभी नहीं कहा न कोई भी संकेत दिया, जिसे मैं समझ पाती.
खैर !
वह अपने वर्तमान में लौट आयी,  
चाय को एक ही घूंट में खत्म किया और अविनाश को लेने स्टेशन जाने की तैयारी करने लगी.
वह स्टेशन ट्रेन आने से पहले पहुंच गयी, ट्रेन समय से ही आ गयी.
अंकिता उसे दूर से देखते ही पहचान गयी, दौड़कर अविनाश के पास आयी और हाथ पकड़कर बोली, तुम आ गये, उसने कहा "तूम्हारे सामने खड़ा हूं"
अविनाश ने अपने बैग से एक पैकेट निकालकर अंकिता को देते हुए कहा, मम्मी ने तुम्हारे लिए भेजा है, खोलकर देख लो"
अंकिता ने पैकैट खोला 
अरे वाह "फिरोजी रंग की चुन्नी" और वह बहुत देर तक रोती रही--

" ज्योति खरे "

13 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

जीवन का एक रंग यह भी। फिरोजी। लाजवाब।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-06-2020) को   "ज़िन्दगी के पॉज बटन को प्ले में बदल दिया"  (चर्चा अंक-3721)    पर भी होगी। 
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
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सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत देर नहीं खुशियों को आने में

सुंदर कथा

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण लघुकथा ।

Rakesh ने कहा…

मन के भाव को बयान करती लघुकथा

Meena sharma ने कहा…

सुंदर लघुकथा

विश्वमोहन ने कहा…

सुंदर कथानक!

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Amrita Tanmay ने कहा…

हृदयस्पर्शी ।

VenuS "ज़ोया" ने कहा…


उम्मीदें हरी ही रहनी चाहिए वरना सोच सूख जाती है

रोचक कथा