दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है
बहुत ही सुन्दर
आशाओं के बाग़ खिले जब बूंद टपकती जेठ मास में-.......वाह बहुत खूब। पूरा गीत ही दिल में उतर गया है। प्रत्युत्तरों हेतु धन्यवाद।
स्मृतियों के उजले वादे सुबह-सुबह ही आते भरे जलाशय शाम तलक मन के सूखे जाते bahut khoob ...
आशाओं के बाग़ खिले जब बूंद टपकती जेठ मास मेंबहुत खूब. बिलकुल सत्य.
यादों और सपनों की यह धूप छाँव सुन्दर लगी
jeth ki tapti garmi main sunder kavita ki fuhar
सुन्दर....बहुत ही सुन्दर....भिगो गयी रचना....सादरअनु
बहुत सुंदर रचना !!
बहुत सुंदर रचनाक्या कहने
पानी के बूंद सी सुन्दर रचना..
बरसे फुहार...
गर्मी में भी लगी शीतल फुहार जेठ मास
वाह वाह इंतनी सुन्दर रचना लिख ही डाली आपने इस तपती झुलसती जेठ मास में |सुन्दर रचना |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!--आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के (चर्चा मंच-1259) सबकी अपनी अपनी आशाएं पर भी होगी!सूचनार्थ.. सादर!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!--आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के http://charchamanch.blogspot.in (चर्चा मंच-1259) सबकी अपनी अपनी आशाएं पर भी होगी!सूचनार्थ.. सादर!
स्मृतियों के उजले वादे सुबह-सुबह ही आते भरे जलाशय शाम तलक मन के सूखे जाते आशाओं के बाग़ खिले जब बूंद टपकती जेठ मास में------ Wah!Wah!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के सभी के अपने अपने रंग रूमानियत के संग ......! चर्चा मंच अंक-1259 पर भी होगी!सादर...!
जेठ मास की झुलसती धुप .....सुंदर अभिव्यक्ति
शुभप्रभात जेठ मास की बहुत सी खूबी दिख गई इस रचना मेंलड़का-लड़की जेठ हो अपने घर के तो उन दोनों की शादी भी नहीं होती जेठ मास में क्या सादर
स्मृतियों के उजले वादे सुबह-सुबह ही आते भरे जलाशय शाम तलक मन के सूखे जाते आशाओं के बाग़ खिले जब बूंद टपकती जेठ मास में------ज्येष्ठ मास का सुंदर वर्णन, तन मन तपन सभी चित्रित हुए.............
आशाओं के बाग़ खिले जबबूंद टपकती जेठ मास में------ अनुपम भाव ... बेहतरीन अभिव्यक्तिसादर
बोली अनबोली आंखें पता मांगती घर का लिखा धूप में उंगली से ह्रदय देर तक धड़का कोलतार की सड़क ढूँढ़ती भटकी पिघली जेठ मास में----- ......बहुत खूब! बहुत भावपूर्ण मनभावन रचना...
स्मृतियों के उजले वादेसुबह-सुबह ही आतेभरे जलाशय शाम तलकमन के सूखे जातेआशाओं के बाग़ खिले जबबूंद टपकती जेठ मास में------जवाब नहीं....बहुत खूबसूरत रचना...
आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक २ जून २०१३ को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
आशाओं के बाग़ खिले जब बूंद टपकती जेठ मास में------ जेठ के तपते मौसम में अगर आशाओं के बीज अंकुरित हों तो इससे सुंदर क्या.सुंदर रचना.
स्मृतियों के उजले वादे सुबह-सुबह ही आते भरे जलाशय शाम तलक मन के सूखे जाते आशाओं के बाग़ खिले जब बूंद टपकती जेठ मास में------ बहुत सुन्दर ....
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46 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर
आशाओं के बाग़ खिले जब बूंद टपकती जेठ मास में-.......वाह बहुत खूब। पूरा गीत ही दिल में उतर गया है। प्रत्युत्तरों हेतु धन्यवाद।
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते bahut khoob ...
आशाओं के बाग़ खिले जब
बूंद टपकती जेठ मास में
बहुत खूब. बिलकुल सत्य.
यादों और सपनों की यह धूप छाँव सुन्दर लगी
jeth ki tapti garmi main sunder kavita ki fuhar
सुन्दर....
बहुत ही सुन्दर....भिगो गयी रचना....
सादर
अनु
बहुत सुंदर रचना !!
बहुत सुंदर रचना !!
बहुत सुंदर रचना
क्या कहने
पानी के बूंद सी सुन्दर रचना..
बरसे फुहार...
गर्मी में भी लगी शीतल फुहार
जेठ मास
वाह वाह इंतनी सुन्दर रचना लिख ही डाली आपने इस तपती झुलसती जेठ मास में |
सुन्दर रचना |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के (चर्चा मंच-1259) सबकी अपनी अपनी आशाएं पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के http://charchamanch.blogspot.in (चर्चा मंच-1259) सबकी अपनी अपनी आशाएं पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओं के बाग़ खिले जब
बूंद टपकती जेठ मास में------
Wah!Wah!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के सभी के अपने अपने रंग रूमानियत के संग ......! चर्चा मंच अंक-1259 पर भी होगी!
सादर...!
जेठ मास की झुलसती धुप .....सुंदर अभिव्यक्ति
शुभप्रभात
जेठ मास की बहुत सी खूबी दिख गई इस रचना में
लड़का-लड़की जेठ हो अपने घर के तो उन दोनों की शादी भी नहीं होती
जेठ मास में
क्या
सादर
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओं के बाग़ खिले जब
बूंद टपकती जेठ मास में------
ज्येष्ठ मास का सुंदर वर्णन, तन मन तपन सभी चित्रित हुए.............
आशाओं के बाग़ खिले जब
बूंद टपकती जेठ मास में------
अनुपम भाव ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
सादर
बोली अनबोली आंखें
पता मांगती घर का
लिखा धूप में उंगली से
ह्रदय देर तक धड़का
कोलतार की सड़क ढूँढ़ती
भटकी पिघली जेठ मास में-----
......बहुत खूब! बहुत भावपूर्ण मनभावन रचना...
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओं के बाग़ खिले जब
बूंद टपकती जेठ मास में------
जवाब नहीं....बहुत खूबसूरत रचना...
आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक २ जून २०१३ को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
आशाओं के बाग़ खिले जब बूंद टपकती जेठ मास में------
जेठ के तपते मौसम में अगर आशाओं के बीज अंकुरित हों तो इससे सुंदर क्या.
सुंदर रचना.
स्मृतियों के उजले वादे
सुबह-सुबह ही आते
भरे जलाशय शाम तलक
मन के सूखे जाते
आशाओं के बाग़ खिले जब
बूंद टपकती जेठ मास में------
बहुत सुन्दर ....
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