गुलाब
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कांटेदार तनों में
खिलते ही
सम्मोहित कर देंने वाले
तुम्हारे रंग
और
देह से उड़ती जादुई
सुगंध को सूंघने
भौंरों का
लग जाता है मजमा
सुखी आंखों से
टपकने लगता है
महुए का रस
जब
तने से टूटकर
प्रेम में सनी
हथेलियों में तुम्हें
रख दिया जाता है
उन हथेलियों को
क्या मालूम
गुलाब की पैदाईश
बीज से नहीं
कांटेदार कलम को
रोपकर होती है
गुलाबों के
सम्मोहन में बंधा यह प्रेम
एक दिन
सूख जाता है
प्रेम को
गुलाब नहीं
गुलाब का
बीज चाहिए----
"ज्योति खरे"