प्यार मैं ही, मैं करूं
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मन-मधुर वातावरण में
प्यार बाँटें
प्यार कर लें
दु:ख अपने पांव पर
जो खड़ा था,
अब दौड़ता है
हर तराशे सुख के पीछे
कोई पत्थर तोड़ता है
आओ करें हम
नव सृजन-
एक मूरत और गढ़ लें
'प्यारे',
प्यार मैं ही मैं करूं
और तुम कुछ ना करो
कैसे बंधाऊं आस मन को
तुम 'न' करो, न 'हाँ' करो!
रतजगे-सी जिन्दगी में
हम कहाँ से
नींद भर लें----
लंबा सफ़र है
हम सभी का
हम मुसाफिर हैं सभी
दौड़ते हैं, हांफते हैं
या बैठते हैं हम कभी
यह सिलसिला है राह का,
प्यार से
कुछ बात कर लें-----
"ज्योति खरे"