चौराहे की
तीन सड़कों के किनारे
अलग अलग गुटों ने
अपने अपने
मंदिर बना रखे हैं
तरह तरह के पुजारी नियुक्त हैं
अलग अलग गुरुओं की
आवाजाही बनी रहती है
शिक्षित दलालों की दूकानों पर
धड़ल्ले से चलता है
गंडा,ताबीज,भभूत,और मंत्रों का कारोबार
चरणामृत पीने की होड़ में
जीवन मूल्य
गुरुओं के दरबार में
गिरवी रख दिए जाते हैं
गुरु पूर्णिमा के दिन
चौराहे की
चौथी सड़क के आखरी छोर पर
रोप आया हूँ
बरगद का एक पेड़
जब यह बड़ा होकर
अपनी टहनियों को फैलायेगा
शुद्ध और पवित्र ऑक्सीजन का
संचार करेगा
लोग
मठाधीशों के चंगुल से निकलकर
इसकी छांव में बैठकर
अपने वास्तविक जीवन मूल्यों को
समझेंगे
साहसी और निडर बनेंगे
लम्बे समय तक
जिंदा रहने की उम्मीद पर
लड़ सकेंगे
अपने आप से -----
"ज्योति खरे"