डंके की चोट पर
ऐंठ कर पकड़ ली
मृत्यु के देवता की कालर
विद्रोह का बजा दिया बिगुल
निवेदनों की लगा दी झड़ी
गहरे धरातल से
खींच कर ले आयी
अपने प्रेम को
अपनी आत्मा को
बांध कर कच्चा सूत
बरगद की पीठ पर
ले गयी अपनी आत्मा को
सपनों की दुनियां से परे
नफरतों के वास्तविक गारे से बनी
कंदराओं में
अपने पल्लू में लपेटकर
ले आयी
शाश्वत प्रेम को
सावित्री होने का सुख
कच्चे सूत में पिरोए
पक्के मोतियों जैसा
होता है---------
"ज्योति खरे"