उम्मीद तो हरी है .........
दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है
शुक्रवार, जनवरी 10, 2014
आलिंगन को आतुर------
ठंड रजाई में
दुबकी पड़ी--
धूप कोने में
सहमी शरमाई सी
खड़ी-----
टपक रही सुबह
कोहरे के संग
सूरज के टूट गए
सारे अनुबंध
कड़कड़ाते समय में
दौड़ रही
घड़ी-----
आलिंगन को आतुर
बर्फीली रातें
गर्माते होंठों से
जीवन की बातें
ना जाने की जिद पर
कपकपाती धुंध
अड़ी------
"ज्योति खरे"
चित्र--
गूगल से आभार
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