शनिवार, जून 17, 2017

पिता -----



अँधेरे को चीरते
सन्नाटे में 
अपने से ही बात करते पिता 
यह सोचते हैं कि कोई उनकी आवाज नहीं सुन रहा होगा 

मैं सुनता हूँ 

कांच के चटकटने सी 
ओस के टपकने सी 
पतली शाखाँओं से दुखों को तोड़ने सी 
सूरज के साथ सुख के आगमन सी 
इन क्षणों में पिता 
व्यक्ति नहीं समुद्र बन जाते हैं 

उम्र के साथ दिशा और दशा बदल जाती है 
नहीं बदलते पिता 
क्योंकि 
उनके जिन्दा रहने का कारण है 
आंसुओं को अपने भीतर रखने की जिद 

पिता 
जीवन के किनारे खड़े होकर 
नहीं सूखने देते कामनाओं का जंगल 
उड़ेलते रहते हैं अपने भीतर का समुद्र 

इसीलिए 
आंसुओं को समेटकर 
अपने कुर्ते में रखने वाले पिता 
अमरत्व के वास्तविक हकदार हैं ------

" ज्योति खरे "

सोमवार, जून 05, 2017

एक हरे पेड़ की तलाश


🔴🌴

निकले थे
गमझे में कुछ जरुरी सामान बांध कर  
किसी पुराने पेड़ के नीचे बैठकर
बीनकर लाये हुए कंडों को सुलगाकर
गक्क्ड़ भरता बनायेंगे
तपती दोपहर की छाँव में बैठकर
भरपेट खायेंगे

सूखे और विकलांग पेड़ों के पास से
एक हरे पेड़ की तलाश में
भटकते रहे

सोचा हुआ कहाँ पूरा हो पाता है

सच तो यह है कि
हमने
घर के भीतर से
निकलने और लौटने का रास्ता
अपनों को ही काट कर बनाया है ----

"ज्योति खरे"