रुंधे कंठ से फूट रहें हैं
अब भी
भुतहे भाव भजन--
शिवलिंग,नंदी,नाग पुराना
किंतु झांझ,मंजीरे,ढोलक
चिमटे नये,नया हरबाना
रक्षा सूत्र का तानाबाना
भूखी भक्ति,आस्था अंधी
संस्कार का
रोगी तन मन---
गंग,जमुन,नर्मदा धार में
मावस पूनम खूब नहाय
कितने पुण्य बटोरे
कितने पाप बहाय
कितनी चुनरी,धागे बांधे
अब तक
भरा नहीं दामन---
जीवन बचा हुआ है अभी
एक विकल्प आजमायें
भू का करें बिछावन
नभ को चादर सा ओढें
और सुख से सो जायें
दाई से क्या पेट छुपाना
जब हर
सच है निरावरण-------
"ज्योति खरे"