सूरज का माथा चूमने वाले
प्रकाश चक्र थे वे
धरती को मां कहने वाले
सुरक्षा बीज थे वे
सारी दिशाओं में घूमते
प्रहरी थे वे
फौजी थे वे
जा रहे थे
नयी ऊर्जा के साथ
अवकाश के बाद
मां से गले लिपटकर
पिता को आश्वस्त करके
बेटे को प्यार और
बिटिया को चूमकर
गांव की गीली मिट्टी की
सुगंध खा कर
सुरक्षा करने
उनींदी अवस्था में
पहले कदम पर ही
मार दिए गये
आतंकियों द्वारा
भूख, हत्या, शोषण, राजनीति
राष्ट्रीय हास्य क्रीड़ाओं
राष्ट्रीय आपदाओं
अंतरराष्ट्रीय प्रलापों
से भी भयावह है
यह रक्त प्रवाह
वे
मरे नहीं
जीवित हैं
लिख गये हैं
संवेदनाओं की पीठ पर
जीत की परिभाषा----
"ज्योति खरे"
5 टिप्पणियां:
भगवान उनके परिवार वालो को सब्र दे,उन वीर सपूतो को बस अश्रु रुपी श्र्द्धांजलि ही दे सकते है हम ,जय हिन्द
उनके परिवार मोहताज रहेंगे। नेता लाशों पर वोट बटोरेंगे। माफ करेंगे।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 75वीं पुण्यतिथि - दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
नमन वीर शहीदों को
विनम्र श्रद्धांजलि
अमर शहीदों को श्रद्धांजलि
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