चिल्लाकर मुहं खोल बे
खुल्म खुल्ला बोल बे
नेताओं की तोंद देखकर
पचका पेट टटोल बे
सुरा सुंदरी और सत्ता का
स्वाद चखो बकलोल बे
सत्ता नाच रही सड़कों पर
चमचे बजा रहे ढोल बे
बहुमत का फिर हंगामा
बता दे अपना मोल बे
भिखमंगे जब बहुमत मांगें
खोल दे इनकी पोल बे
तेरे बूते राजा और रानी
दिखा दे अपना रोल बे
बेशकीमती लोकतंत्र को
फोकट में मत तॊल बे
"ज्योति खरे"
20 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-04-2019) को "चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है" (चर्चा अंक-3293) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय मूख दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाहह्हह... सर..जोरदार धारदार शानदार अभिव्यक्ति👌👌👌👌👌
सटाक !
लाजवाब
करारा कटाक्ष।
लाजवाब।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/04/2019 की बुलेटिन, " मूर्ख दिवस विशेष - आप मूर्ख हैं या समझदार !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह वाह वाह और सुभान अल्ला ...
कमाल के शेर ... लाजवाब शेर ... चुटीली बात सहज कह दी ...
बहुत मज़ा आया ...
तेरे बूते राजा और रानी
दिखा दे अपना रोल बे
बेशकीमती लोकतंत्र को
फोकट में मत तॊल बे।
वा व्व बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 3 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
दमदार रचना तीखा कटाक्ष सीधा आरपार।
अप्रतिम ।
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
वाह!!!!
बहुत ही लाजवाब, शानदार, धारदार कटाक्ष ।
आभार आपका
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