सुबह से
इंतजार है
तुम्हारे मोगरे जैसे खिले चेहरे को
करीब से देखूं
ईद मुबारक कह दूँ
पर तुम
शीरखुरमा, मीठी सिवईयाँ
बांटने में लगी हो
मालूम है
सबसे बाद में
मेरे घर आओगी
दिनभर की थकान उतारोगी
बताओगी
किसने कितनी ईदी दी
तुम
बिंदी नहीं लगाती
पर मैं
इस ईद में
तुम्हारे माथे पर
गुलाब की पंखुड़ी
लगाना चाहता हूं
मुझे नहीं मालूम
तुम इसे
प्रेम भरा बोसा समझोगी
या गुलाब की सुगंध का
आत्मीय अहसास
या ईदी
अब जो भी हो
प्रेम तो जिन्दा रखना है
अपन दोनों को ----
"ज्योति खरे"
6 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत एहसास से भरी अभिव्यक्ति सर..वाह👌
वाह
बहुत कोमल एहसासो से भरी रचना ,सादर नमस्कार सर
आपकी यह रचना पढ़कर यही अहसास होता है कि प्रेम का सिर्फ एक ही धर्म होता है - प्रेम।
सादर।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/06/2019 की बुलेटिन, " 5 जून - विश्व पर्यावरण दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत खूबसूरत रचना
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