मंगलवार, अक्तूबर 22, 2019

आगे बढ़ो

आगे बढ़ो
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कामरेड
तुम्हारी भीतरी चिंता
तुम्हारे चेहरे पर उभर आयी है
तुम्हारी लाल आँखों से
साफ़ झलकता है
कि,तुम
उदासीन लोगों को
जगाने में जुटे हो

आगे बढ़ो
हम तुम्हारे साथ हैं

मसीहा सूली पर चढ़ा दिये गए
गौतम ने घर त्याग दिया
महावीर अहिंसा की खोज में भटकते रहे
गांधी को गोली मार दी गयी

संवेदना की जमीन पर
कोई नया वृक्ष नहीं पनपा
क्योंकि
संवेदना की जमीन पर
नयी संस्कृति
बंदूक पकड़े खड़ी है

बंजर और दरकी जमीन पर
तुम
नये अंकुर
उपजाने में जुटे हो
यह जटिल और जुझारू काम है
जुटे रहो

आगे बढ़ो
हम तुम्हारे साथ हैं

जो लोग
संगीतबद्ध जागरण में बैठकर
चिंता व्यक्त करते हैं
वही आराम से सोते हैं
इन्हें सोने दो

तुम्हारी चिंता
महानगरीय सभ्यता
और बाजारवाद पर नहीं
मजदूरों की रोटियों की है
उनके जीवन स्तर की है

तुम अपनी छाती पर
वजनदार पत्थर बांधकर
चल रहे हो उमंग और उत्साह के साथ
मजदूरों का हक़ दिलाने

कामरेड आगे बढ़ो
हम तुम्हारे साथ हैं
तुम्हें लाल सलाम
लाल सलाम
इंकलाब जिंदाबाद
जिंदाबाद

"ज्योति खरे"

11 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह। सलाम।

मन की वीणा ने कहा…

विवेक को झंझोरती सटीक अभिव्यक्ति।
हृदय स्पर्शी।

Meena Bhardwaj ने कहा…

गहन चिन्तन लिए हृदयस्पर्शी रचना ।

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

बेनामी ने कहा…

प्रशंसनीय प्रस्तुति आदरणीय

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