फुरसतिया बादल
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बजा बजा कर
ढोल नगाड़े
फुरसतिया बादल आते
बिजली के संग
रास नचाते
बूंद बूंद चुंचुआते--
कंक्रीट के शहर में
ऋतुयें रहन धरी
इठलाती नदियों में
रोवा-रेंट मची
तर्कहीन मौसम अब
तुतलाते हकलाते--
चुल्लू जैसे बांधों में
मछली डूब रही
प्यासे जंगल में पानी
चिड़िया ढूंढ रही
प्यासी ताल-तलैयों को
रात-रात भरमाते--
◆ज्योति खरे
16 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर♥️
वाह भिगो के मारा है अन्दर तक
आभार आपका
आभार आपका
वाह!वाह!गज़ब कहा सर।
चुल्लू जैसे बांधों में
मछली डूब रही
प्यासे जंगल में पानी
चिड़िया ढूंढ रही... गज़ब 👌
आदरणीया ज्योति खरे जी, namaste🙏! फुरसतिया बादल, बहुत अच्छा शीर्षक!.. कविता की ये पंक्तियाँ अच्छी लगी.
प्यासी ताल-तलैयों को
रात-रात भरमाते...
कृपया दृश्यों के संमिश्रण और पृष्ठभूमि में मेरी आवाज में कविता पाठ की साथ निर्मित इस वीडियो को यूट्यूब चैनल के इस लिंक पर देखें और कमेँट बॉक्स में अपने विचारों को देकर मेरा मार्गदर्शन करें. हर्दिक आभार! ब्रजेन्द्र नाथ
यू ट्यूब लिंक :
https://youtu.be/RZxr7IbHOIU
बेहद सराहनीय भावाव्यक्ति सर।
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कंक्रीट के जंगल
पानी पी नहीं पाते
नालों में भरे कर्कट
विभीषिका फैलाते
ताल-तलैय्या,झरने
चित्रों में संरक्षित होंगे
मनुष्यों के लक्षण
भविष्य का आईना दिखाते।
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सादर प्रणाम सर।
बहुत आभार आपका
आभार आपका
आभार आपका
चुल्लू जैसे बांधों में
मछली डूब रही
प्यासे जंगल में पानी
चिड़िया ढूंढ रही
...बहुत सुंदर सटीक लिखा है ।
महाशय ,
सुन्दर नन्हीं किन्तु सटीक रचना !
आभार आपका
आभार आपका
चुल्लू जैसे बांधों में
मछली डूब रही
प्यासे जंगल में पानी
चिड़िया ढूंढ रही
प्यासी ताल-तलैयों को////
वाह वाह!! बहुत प्यारे फुरसतिया बादल 👌👌👌👌🙏🙏
मछली डूब रही
प्यासे जंगल में पानी
चिड़िया ढूंढ रही
.....सुंदर सटीक लिखा है
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