सोमवार, अक्टूबर 26, 2015

शरद का चाँद बनकर ----

 
 
कुछ कागज में लिखी स्मृतियाँ
कुछ में सपने
कुछ में दर्द
कुछ में लिखा चाँद
 
चांद रोटियों की शक्ल में ढल गया
भूख और पेट की बहस में
गुम गयी
अंतहीन सपनो के झुरमुट में स्मृतियां
 
दर्द कराह कर
जंग लगे आटे के कनस्तर में समा गया
 
तुम्हारे खामोश शब्द
समुंदर की लहरों जैसा कांपते रहे
और मैं प्रेम को बसाने की जिद में
बनाता रहा मिट्टी का घरोंदा
 
और एक दिन तुम
अक्टूबर की शर्मीली ठंड में
अपने दुपट्टे में बांधकर जहरीला वातावरण
उतर आयी थी
शरद का चाँद बनकर
मेरी खपरीली छत पर


                                # ज्योति खरे 

चित्र--- गूगल से साभार 


7 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

SANDEEP KUMAR SHARMA ने कहा…

तुम्हारे खामोश शब्द
समुंदर की लहरों जैसा कांपते रहे
और मैं प्रेम को बसाने की जिद में
बनाता रहा मिट्टी का घरोंदा---

गहनतम।

रेणु ने कहा…

ओह! समय सबसे निर्दयी है जो मधुर स्मृतियां, सुनहरे सपने और उम्मीदों के चांद को समेटकर मात्र रोटी और जीवन के आवश्यक दायित्वो तक सीमित कर देता है।। फिर भी प्रेम की शक्ति और विस्तार असीम है, कोआखिर पहुंच ही जाता है छत चांद बनकर। भावपूर्ण अभिव्यक्ति जो मन को सुकून देती है। सादर शुभ कामनाएं 🙏🙏💐💐

Sudha Devrani ने कहा…

चांद रोटियों की शक्ल में ढल गया
भूख और पेट की बहस में
गुम गयी
अंतहीन सपनो के झुरमुट में स्मृतियां

दर्द कराह कर
जंग लगे आटे के कनस्तर में समा गया
ओह!!!
बहुत ही हृदयस्पर्शी...लाजवाब सृजन

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चाँद रोटियों में ढलक गया .... और सपने सपने ही रह गए ....
गहन भाव , मर्मस्पर्शी रचना

जिज्ञासा सिंह ने कहा…


कुछ कागज में लिखी स्मृतियाँ
कुछ में सपने
कुछ में दर्द
कुछ में लिखा चाँद

चांद रोटियों की शक्ल में ढल गया
भूख और पेट की बहस में
गुम गयी
अंतहीन सपनो के झुरमुट में स्मृतियां.. वाह,सुंदर भावों का सृजन।

Kamini Sinha ने कहा…

तुम्हारे खामोश शब्द
समुंदर की लहरों जैसा कांपते रहे
और मैं प्रेम को बसाने की जिद में
बनाता रहा मिट्टी का घरोंदा

प्रेम बस ही जाता है खपरीली छत के नीचे भी,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सर,सादर नमन