फागुन की
समेटकर बैचेनियां
दहक रहा टेसू
महुये की
दो घूंट पीकर
बहक रहा टेसू---
सुर्ख सूरज को
चिढ़ाता खिलखिलाता
प्रेम की दीवानगी का
रूतबा बताता
चूमकर धरती का माथा
चमक रहा टेसू---
गुटक कर भांग का गोला
झूमता मस्ती में
छिड़कता प्यार का उन्माद
बस्ती बस्ती में
लालिमा की ओढ़ चुनरी
चहक रहा टेसू--
जीवन के बियावान में
पलता रहा
पत्तलों की शक्ल में
ढ़लता रहा
आंसुओं के फूल बनकर
टपक रहा टेसू---
"ज्योति खरे"
15 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
वाह ! अप्रतिम रचना
सुप्रभात आदरणीय
लाजवाब। होली शुभ हो।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-03-2019) को "बरसे रंग-गुलाल" (चर्चा अंक-3280) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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होलिकोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब ,,,सर आप को होली की हार्दिक बधाई
बहुत सुंदर। होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
नयी पोस्ट: मंदिर वहीं बनाएंगे।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
वाह, बहुत सुंदर !
बहुत खूबसूरत सृजन । होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
बहुत सुन्दर
आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 27 मार्च 2019 को साझा की गई है..
http://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..ध
गुटक कर भांग का गोला
झूमता मस्ती में
छिड़कता प्यार का उन्माद
बस्ती बस्ती में
लालिमा की ओढ़ चुनरी
चहक रहा टेसू--बेहतरीन आदरणीय
मिट्टी की खुशबू सी महक रही है रचना
सादर
सुर्ख सूरज को
चिढ़ाता खिलखिलाता
प्रेम की दीवानगी का
रूतबा बताता
चूमकर धरती का माथा
चमक रहा टेसू---
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर.... लाजवाब
वाह.. बहुत खूबसूरत.
लालिमा की ओढ़ चुनरी
चहक रहा टेसू--बेहतरीन
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