गुहार
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गालियां देता मन
दहशत भरा माहौल
चुप्पियां दरवाजा
बंद कर रहीं
खिड़कियाँ रहीं खोल
थर्मामीटर नाप रहा
शहर का बुखार
सिसकियां लगा रहीं
जिंदा रहने की गुहार
आंकड़ों के खेल में
आदमी के जिस्म का
क्या मोल
राहत के नाम का
पीट रहे डिंडोरा
उम्मीदों का कागज
कोरा का कोरा
शामयाने में हो रहीं
तार्किक बातें
सड़कों में बज रहा
उल्टा ढोल---
"ज्योति खरे"
18 टिप्पणियां:
आपने यथार्थ कहा है आदरणीय ज्योति जी।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सत्य कहा आपने।
ढोल ही ढोल। लाजवाब :)
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२७-०४-२०२१) को 'चुप्पियां दरवाजा बंद कर रहीं '(चर्चा अंक-४०५०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आज के सत्य पर प्रहार करती आपकी इस रचना को नमन आदरणीय ज्योति खरे जी।
लाशों के सौदागर अर्थात हमारे राजनेता,.... इस पर भी अपनी पीठ थपथपाते नजर आते है।।।।।
विसंगतियों से भरा यह माहौल, इसमें मानव का क्या मोल!!!
बेहद लाजवाब सृजन
इन दिनों के सत्य को उजागर करती मार्मिक सृजन सर,सादर नमन
वाह! शानदार कविता।
लाजवाब लेखन
शानदार कविता
आदरणीय सर, आज की परिस्थिति पर सत्य को उकेरते हुए एक बहुत ही मार्मिक व सटीक रचना । अब ईश्वर से यही प्रार्थना है की कोरोना रूपी संकट दूर हो और लोग फिरसे सामान्य जीवन जी सकें। सुंदर रचना के लिए हार्दिक आभार व आपको प्रणाम।
वाह!बेहतरीन!
सामायिक विभिषिका पर सही कहा आपने । सार्थक सृजन।
सादर।
झुठे सरकारी आंकड़ों के खेल में आम आदमी तो हमेशा से पिसता ही आ रहा है
वाकई में उल्टा ढोल ही बज रहा है...कुछ लोग ख़ुद को सही साबित करने के चक्कर में कुतर्क करने लग रहे हैं
जो रोज़ाना घट रहा है आजकल...सचमुच ह्रदय विदारक है
सत्य को दर्शाती सुन्दर रचना...
आभार आपका
आभार आपका
तीर की तरह चुभन है सृजन में ।
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