स्त्री पिस जाती है
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स्त्री पीसती है
सिल-बट्टे में
ससुर की
देशी जड़ी बूटियां
सास के लिए
सौंठ,कालीमिर्च,अजवाइन
पति के तीखे स्वाद के लिए
लहसुन,मिर्चा,अदरक
पीस लेती है
कभी-कभार
अपने लिए भी
टमाटर हरी-धनिया
स्त्री नहीं समझ पाती कि,
वह खुद
पिसी जा रही है
चटनी की तरह---
◆ज्योति खरे
3 टिप्पणियां:
पुरष कवि हो लेता है :)
बेहद खूबसूरत रचना
स्त्री की पीड़ा को शब्द देती प्रभावशाली रचना
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