बुधवार, जुलाई 16, 2025

नहीं रख पाते

नहीं रख पाते
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खिलखिलाती
बरसात
नहला देती है
पसीने से सनी धूप को
उतरकर दीवारों के सहारे
घुस जाती है
घर के भीतर
भर देती है
मौन संबंधों में संवाद 
फिर छत पर बैठकर
गाती है युगल गीत

बरसात
कर देती है
मुरझा रहे प्रेम को
तरबतर 

लेकिन हम
सहेजकर रख लेते हैं छतरी
नहीं रख पाते
सहेजकर
बरसात---

◆ज्योति खरे

9 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Sweta sinha ने कहा…

आहा ... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सर।
लाज़वाब।
पतझड़ के इर्द-गिर्द बसी दुनिया
बारिश के एहसास जी नहीं पाती
छतरी में छुपाकर ख़ुद को
अपने हिस्से बारिश
मन भर जी नहीं पाती...।




शारदा अरोरा ने कहा…

सुंदर अहसास

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Alaknanda Singh ने कहा…

खिलखिलाती
बरसात
नहला देती है
पसीने से सनी धूप को.....क्या खूसूरती से कहा क‍ि ''बरसात
नहला देती है पसीने की धूप को''' ...वाह

Anita ने कहा…

वाक़ई कोई सहेज ले सावन तो कभी सूखा नहीं पड़ेगा मन उपवन में

हरीश कुमार ने कहा…

बेहतरीन रचना