गुरुवार, जुलाई 25, 2024

याद करती है माँ

माँ
जब तुम याद करती हो
मुझे हिचकी आने लगती है
मेरी पीठ पर लदा
जीत का सामान
हिलने लगता है

विजय पथ पर
चलने में
तकलीफ होती है

माँ
मैं बहुत जल्दी आऊंगा
तब खिलाना
दूध भात
पहना देना गेंदे की माला
पर रोना नहीं
क्योंकि
तुम रोती बहुत हो
सुख में भी
दुःख में भी----
                                                        ◆ज्योति खरे

गुरुवार, जुलाई 11, 2024

समीप खीचते हुए

समीप खीचते हुए
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मेरे और तुम्हारे 
विषय को लेकर
मनगढ़ंत किस्सों में
बेतुकी बातें दर्ज हैं

यहां तक कि,
दीवारों पर भी लिख दिया गया है
मेरा और तुम्हारा नाम 
बना दिया है दिल 
और उस दिल को 
तीर से भी चीर दिया गया है

तुम हमेशा
मेरे करीब आने से डरती हो
कहती हो
कि, लोग तरह तरह की कहानी गढ़ेंगे
लिख देंगें
उपन्यास 

मैंने
अपने समीप खीचते हुए
उससे कहा
बाँध लो 
अपनी चुन्नी में 
हल्दी चांवल के साथ 
अपना प्रेम 

सारे किस्से 
लघु कथा में सिमट जाएंगे--- 

◆ज्योति खरे

गुरुवार, जुलाई 04, 2024

प्रेम को नमी से बचाने

प्रेम को नमी से बचाने
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धुओं के छल्लों को छोड़ता 
मुट्ठी में आकाश पकड़े
छाती में 
जीने का अंदाज बांधें
चलता रहा 
अनजान रास्तों पर 

रास्ते में
प्रेम के कराहने की 
आवाज़ सुनी 
रुका 
दरवाजा खटखटाया 
प्रेम का गीत बाँचता रहा
जब तक 
प्रेम उठकर खड़ा नहीं हुआ 

उसे गले लगाया 
थपथपाया
और संग लेकर चल पड़ा
शहर की संकरी गलियों में

दोनों की देह में जमी
प्रेम की गरमी
गरजती बरसती बरसात
बहा कर 
ज़मीन पर न ले आये
तो खोल ली छतरी
खींचकर पकड़ ली 
उसकी बाहं
और चल पड़े 
प्रेम को नमी से बचाने
ताकि संबंधों में 
नहीं लगे फफूंद---  

◆ज्योति खरे