सोमवार, मार्च 23, 2020

सन्नाटा


सन्नाटे के गाल पर 
मारो नहीं चांटा
गले लगाओ इसे

घबड़ाहट में यहां वहां
भाग रहे मौसम को
छतों,बालकनी 
आंगन पर पसरे सन्नाटे के 
करीब लाओ
यह दोस्ती 
हमें जिंदा रहने की 
ताकत देगी

कई दशकों बाद
कुआं , तलाब और छांव
की स्मृतियां ताजा हो रहीं हैं
उदास कुत्तों के 
हांफने की आवाजें आ रहीं हैं

चिड़ियां 
छतों पर बैठने से 
नहीं कतरा रहीं 
ऐसे एकांत समय में
इन्हें दाना पानी
तो दिया ही जा सकता है

सन्नाटे को 
कभी समझा ही नहीं  
समझ तो तब आया
जब बूढ़े मां बाप से 
बात करते समय 
उनके चेहरों से 
अपनेपन का संतोष 
आंखों से टपक गया 

सन्नाटे ने 
प्रेम करने का सलीका सिखाया
बच्चों ने 
दिन में कई बार भीतर तक 
गुदगुदाया

सन्नाटा 
तुम
सुधार तो दोगे देश के हालात
पर निवेदन है
सुधारते रहना 
समय समय पर
मध्यमवर्गीय परिवारों के
मानसिक हालात

छुट्टी के दिन 
बिना आहट के आना
स्वागत रहेगा तुम्हारा---


मंगलवार, मार्च 17, 2020

कोरोना


विषाणु
कतई लापरवाह नहीं है
इसे याद है 
अपना शिविर-घर
चालाक और समझदार भी है
जानता है कि
इसके इशारे से ही 
दिल धड़केगा 
या नहीं धड़केगा
आंसुओं का बहना या ना बहना
यही तय करेगा

समय की नब्ज को 
टटोलकर पहले इसने जाना
कि,जब समूची दुनियां के मनुष्य
अपने ही आप से झूझ रहें हों
तो आसानी से इनके भीतर
घुसा जा सकता है

वह यह भी जानता है कि 
मनुष्य 
हजार विडंबनाओं के बावजूद 
प्रेम-स्पर्श और सदभाव के
रास्ते चलता है

वह चुपचाप 
सदभाव के रास्ते चला
अंधेरे और उजाले के बीच के क्षणों में 
आक्सीजन में मिले कणों के साथ
भीड़ भरे इलाकों में घुसकर 
बना लिया
लाल,सफ़ेद रक्त कोशिकाओं के मध्य
अपना शिविर-घर

माईक्रोस्कोप से गुजरते हुए
दुनियां की किसी प्रयोगशाला में
नहीं पकडा़या 

वह कौन था----?
जिसने इसे पहली बार 
महसूसा होगा
परखा होगा
सुख को दुःख में बदलने के बाद
प्रेम को प्रेम से बिछडने के बाद

शायद
इसी शख्स ने रखा होगा
इस अद्रश्य सूक्ष्म विषाणु का नाम
मृत्यु का तांडव
कोरोना


रविवार, मार्च 08, 2020

चाहती हैं स्त्रियां


ईट भट्टोंँ में
काम करने वाली स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनका भी 
अपना घर हो

खेतों पर
भूखे रहकर
अनाज ऊगाने वाली स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनका भी
और उनके बच्चों का
भरा रहे पेट

मजबूर और गरीब स्त्रियां
चाहती हैं
कि, उनकी फटी साड़ी मेँ  
न लगे थिगड़ा
सज संवर कर
घूम सकें बाजार हाट

यातनाओं से गुजर रही स्त्रियां
चाहती हैं
कि , कोई 
उलझनों की
खोल दे कोई गठान 
ताकि उड़ सकें
कामनाओं के आसमान में
बिना किसी भय के

ऐसी स्त्रियां चाहती हैं
देश दुनियां में 
केवल सुख भोगती स्त्रियों का 
जिक्र न हो
जिक्र हो 
उपेक्षा के दौर से गुजर रहीं स्त्रियों का

रोज न सही 
महिला दिवस के दिन तो 
होना चाहिए---

बुधवार, मार्च 04, 2020

यार फागुन


यार फागुन
सालभर में एक बार
चले आते हो दबे पांव
खोलकर प्रेम के रहस्यों को
फिर चले जाते हो

तुम केवल
बात करते हो 
रंगदारी से रंगों की
प्रेम के मनुहार की

यार फागुन
शहर की
संकरी गलियों में भी
झांक लिया करो
मासूम गरीबों के सपने
रंगहीन पानी की तरह 
बहता मिलेंगे
झोपड़ पट्टी में
कुछ दिन गुजारो
भूखे बच्चों के शरीर में
कपड़ों के नाम पर
चिथड़ा ही मिलेंगे

यार फागुन
उजड़ते गांव में भी 
एकाध बार आओ
जहां पैदा तो होता है अनाज
पर रोटियां की कमी है
सर्वहारा वर्ग को
गुझिया के चक्कर में 
कर्ज में ना लादो

यार फागुन
एक चुटकी गुलाल
मजदूरों के गाल पर भी मल देना
गुस्सा मत होना
दोस्त हो
बिना गुलाल के भी
गले लगा लेना

यार फागुन
आते रहना इसी तरह
हर साल
तुम्हारे बहाने 
रुठों को गले लगा लेते हैं
दुश्मनों के माथे पर
टीका लगाकर
अपना बना लेते हैं------