बुधवार, मई 19, 2021

स्त्री बांधकर रखती है अपनी चुन्नी में

डूबते सूरज को
उठा लाया हूं
तुम्हें सौंपने
कि अभी बाकी है
घुप्प अंधेरों से लड़ना

कि अभी बाकी है
नफरतों की चादरों से ढंकी
प्रेम के ख़िलाफ़ हो रही
साजिशों का
पर्दाफाश करना
काली करतूतों की
काली किताब का 
ख़ाक होना

कि अभी बाकी है 
लड़कियों का 
उजली सलवार कमीज़ पहनकर
दिलेरी से
नंगों की नंगई को
चीरते निकल जाना

कि अभी बाकी है
धरती पर
स्त्री की सुंदरता का
सुनहरी किरणों से
सुनहरी व्याख्या लिखना

कि अभी बहुत कुछ बाकी ना रहे 
इसलिए 
तुम्हारी लहराती चुन्नी में
रख रहा हूं सूरज
मुझे मालूम है
तुम फेर कर 
प्रेममयी उंगलियां
बस्तियों की हर चौखट पर
भेजती रहोगी 
सुबह का सवेरा
और
सूरज से कहोगी
कि दिलेरी से ऊगो
मैं तुम्हारे साथ हूँ

स्त्री के कारण ही
जीवित होता है
नया सृजन
कायम रहती है दुनियां
क्योंकि स्त्री 
अपनी चुन्नी में
बांधकर रखती है हरदम
निःस्वार्थ प्रेम -----

◆ज्योति खरे

29 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह लाजवाब

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।


शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुंदर।

Prakash Sah ने कहा…

बिल्कुल... निःस्वार्थ प्रेम तो होता ही है।
आपने स्त्री की सृजन भूमिका को बखूबी ढंग से इस रचना के माध्यम से प्रस्तुत किया।

Asharfi Lal Mishra ने कहा…

सराहनीय।

Preeti Mishra ने कहा…

हर एक लाइन बहुत खूबसूरती से लिखी है आपने

PRAKRITI DARSHAN ने कहा…

स्त्री के कारण ही
जीवित होता है
नया सृजन
कायम रहती है दुनियां
क्योंकि स्त्री
अपनी चुन्नी में
बांधकर रखती है हरदम
निःस्वार्थ प्रेम -----बहुत गहरी रचना है

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह ..... कितनी गहराई है आपकी इस रचना में । नारी के प्रति आपकी भावनाओं का मन से सम्मान ।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

आपने जो कहा, ठीक कहा।

उर्मिला सिंह ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर रचना ।

Meena Bhardwaj ने कहा…

मुझे मालूम है
तुम फेर कर
प्रेममयी उंगलियां
बस्तियों की हर चौखट पर
भेजती रहोगी
सुबह का सवेरा
लाजवाब सृजन !

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन

Sarita Sail ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

स्त्री को सहज सुंदर सम्मान देती बहुत ही अर्थपूर्ण रचना ।

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Jyoti khare ने कहा…

आभार आपका

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन।

Simran Sharma ने कहा…

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डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

स्त्री के लिए प्रेम और सम्मान से परिपूर्ण रचना. इस सुन्दर सृजन के लिए बधाई आपको.

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

Allbhajan ने कहा…

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