बुधवार, दिसंबर 30, 2020

कैसे भूल सकता हूँ तुम्हें

कैसे भूल सकता हूँ तुम्हें
*******************
गांव की छोटी सी 
किराने की दुकान से
एक पाव आटा और नमक 
पेड़ के नीचे बैठी
सब्जी वाली से 
आलू,भटा और मिर्च
खरीदता आ गया हूँ 
न सूखने की जिद पर अड़ी  
रेतीली नदी के किनारे
बैठकर 
सुलगा रहा हूँ
जंगल से बीन कर लाये कंडे
जिनमें भूजूंगा
गक्कड़,आलू औऱ भटा के साथ
भूख और लाचारी 

कमबख्त 
सरसराती ठंडी हवाएं भी
इसी समय 
कुरेद रहीं हैं 
घाव के ऊपर जमीं पपड़ी

कैसे भूल सकते हैं तुम्हें
दो हजार बीस
कि, तुमने हमारी पीठ पर
चिपकाकर
निरादर औऱ अपमान की पर्ची
रोजी रोटी के सवालों को धकियाकर 
दौड़ा दिया था
राष्ट्रीय राजमार्ग पर
कभी नहीं भूल पाएंगे
वह चिलचिलाती धूप की दोपहर
एक बूढी मां ने
अपने हिस्से की रोटी देते समय कहा
बेटा 
मेरे पास चौड़ी छाती तो नहीं
पर दिल है
साथ में काम करने वाली मजदूर लड़की ने
पसीने को पोंछने
अपना दुपट्टा उतारकर देते हुए कहा था
जिंदा रहो तो हमें याद रखना
हम सड़क पर 
पानी की आस लिए
अपने घर की ओर चलते रहे 
औऱ तुम
दरबार में बैठकर 
भजन गाते रहे

कैसे भूल सकते हैं तुम्हें
दो हजार बीस
कि,कराहती साँसों को रौंदकर तुम
उमंग औऱ उत्साह से भरे
जुलूसों में समर्थंन जुटाने
फिरते रहे शहर शहर
जो हाथ 
तुम्हारे स्वागत में
तालियां बजाते रहे
उन्हीं हांथों में
लोकतंत्र के बहाने
फुटपाथ सौपकर जा रहे हो

दो हजार बीस
बैठो हमारे साथ
गक्कड़ भरता खाओ
औऱ जाते जाते याद रखना
मेहनतकश 
कलेंडरों पर लिखी 
तारीखें नहीं गिनते
वे तो 
लिखते हैं नए सिरे से इतिहास

कैसे भूल सकते हैं तुम्हें
दो हजार बीस

"ज्योति खरे"

रविवार, दिसंबर 13, 2020

तम शीत ऋतु की तरह आती हो

तुम शीत ऋतु की तरह आती हो
*************************
तुम्हारे आने की सुगबुगाहट से
खड़कियों में 
टांग दिए हैं
गुलाबी रंग के नये पर्दे 
क्योंकि
तुम्हें धूप का छन कर
कमरे में आना बहुत पसंद है

मैरून रंग की 
लैक्मे की लिपिस्टिक
एचन्ट्यूर का रोज़ पावडर
कैल्विन क्लिन का परफ्यूम 
वेसिलीन
औऱ निविया की कोल्ड क्रीम
ड्रेसिंग टेबल पर सजा दी है
आइने को चकमा दिया है
ताकि, तुम्हें 
अपने चेहरे की झूर्रियों को
देखते समय
आंखों में जोर न लगाना पड़े
 
मसूर की दाल में
बेसन,गुलाब जल मिलाकर
उबटन बना दिया है
औऱ पियर्स की सुगंध से
महका दिया है 
स्नानघर 

रजाई में नयी रुई भरवा दी है
कत्थई रंग का ऊनी कार्डिगन 
काला शाल
औऱ कुछ पुरानी स्वेटर
रख दी है सहेजकर

खाने की मेज पर
गजक, गुड़ की पट्टी
सजा दी है

तुम्हारे आने की सुगबुगाहट से
बहुत कुछ बदल जाता है
पर सबसे ज्यादा 
बदल जाता हूँ मैं
जानता हूँ 
घर के अंदर आने से पहले
मेरे कांधे पर सर रखकर
वही पुराना सवाल करोगी
मुझे कितना चाहते हो ?

मैं भी वही पुराना जवाब दूंगा
घर में रखी 
तुम अपनी पसंद की
चीजों को देखो
औऱ महसूस करो

तुम देहरी पर रुककर
फिर कहोगी
मुझसे प्यार करते हो ?
मैँ तुम्हें फिर समझाऊँगा

मैँ प्यार नहीं
समर्पण का पक्षधर हूं--- 

"ज्योति खरे"