शुक्रवार, जुलाई 26, 2019

वाह रे पागलपन

सावन में
मंदिर के सामने
घंटों खड़े रहना
तुम्हें कई कोंणों से देखना

तुम्हारे चमकीले खुले बाल
हवा में लहराता दुपट्टा
मेंहदी रचे हांथ
जानबूझ कर
सावनी फुहार में तुम्हारा भींगना
दुपट्टे को
नेलपॉलिश लगी उंगलियों से
नजाकत से पकड़ना,
ओढ़ना
कीचड़ में सम्हलकर चलना
यह सब देखकर
सीने में लोट जाता था सांप-

पागल तो तुम भी थी
जानबूझ कर निकलती थी पास से
कि,
मैं सूंघ लूं
तुम्हारी देह से निकलती
चंदन की महक
पढ़ लूं आंखों में लगी
कजरारी प्रेम की भाषा
समझ जाऊं
लिपिस्टिक लगे होठों की मुस्कान-

आज जब
खड़ा होता हूँ
मौजूदा जीवन की सावनी फुहार में
झुलस जाता है
भीतर बसा पागलपन
जानता हूं
तुम भी झुलस जाती होगी
स्मृतियों की 
सावनी फुहार में--

वाकई पागल थे अपन दोनों-----

"ज्योति खरे"

सोमवार, जुलाई 22, 2019

पढ़ना जरूरी है


बारूद में लिपटी
जीवन की किताब को
पढ़ते समय
गुजरना पड़ता है
पढ़ने की जद्दोजहद से

दहशतजदा हवाओं का
खिड़कियों से सर्राते चले आना
छत के ऊपर किसी
आतातायी के भागते समय
पैरों की आवाजें आना
खामोश दीवारों की परतों का
अचानक उधड़ कर गिर जाना
बच्चों की नींद की तरह
कई-कई सपनों को
चौंककर देखना
ऐसे समय में भी
पढ़ना तो जरूरी है

जीवन की कसैली नदी में
तैरते समय
डूबने की फड़फडाहट में
पकड़ाई आ जाता है
आंसुओं की बूंदों से भरा आंचल

अम्मा ले आती हैं हमेशा
जीवन के डूबते क्षणों म़े
कसैली नदी से निकालकर
पकड़ा देती है
बारुद से लिपटी किताब

अगर नहीं पढ़ोगे किताब
तो दुनियां में लगी आग को
कैसे बुझा पाओगे---

"ज्योति खरे"

मंगलवार, जुलाई 16, 2019

गुरु पूर्णिमा के दिन

चौराहे की
तीन सड़कों के किनारे
अलग अलग गुटों ने
अपने अपने
मंदिर बना रखे हैं
तरह तरह के पुजारी नियुक्त हैं
अलग अलग गुरुओं की
आवाजाही बनी रहती है

शिक्षित दलालों की दूकानों पर
धड़ल्ले से चलता है
गंडा,ताबीज,भभूत,और मंत्रों का कारोबार

चरणामृत पीने की होड़ में
जीवन मूल्य
गुरुओं के दरबार में
गिरवी रख दिए जाते हैं

गुरु पूर्णिमा के दिन
चौराहे की
चौथी सड़क के आखरी छोर पर
रोप आया हूँ
बरगद का एक पेड़

जब यह बड़ा होकर
अपनी टहनियों को फैलायेगा
शुद्ध और पवित्र ऑक्सीजन का
संचार करेगा
लोग
मठाधीशों के चंगुल से निकलकर
इसकी छांव में बैठकर
अपने वास्तविक जीवन मूल्यों को
समझेंगे
साहसी और निडर बनेंगे

लम्बे समय तक
जिंदा रहने की उम्मीद पर
लड़ सकेंगे
अपने आप से -----

"ज्योति खरे"

गुरुवार, जुलाई 04, 2019

सावधान हो जाओ

बादल दहाड़ते आते हैं
बिजली
बार-बार चमककर
जीवन के
उन अंधेरे हिस्सों को दिखाती है
जिन्हें हम अनदेखा कर
अपनी सुविधानुसार जीते हैं
और सोचते हैं कि,
जीवन जिया जा रहा है बेहतर

बादल बिजली का यह खेल
हमें कर रहा है सचेत और सर्तक
कि, सावधान हो जाओ
आसान नहीं है अब
जीवन के सीधे रास्ते पर चलना

लड़ने और डटे रहने के लिए
एक जुट होने की तैयारी करो

बेहतर जीवन जीने के लिए
पार करना पड़ेगा
बहुत गहरा दलदल ----

"ज्योति खरे"

सोमवार, जुलाई 01, 2019

दाई से क्या पेट छुपाना


रुंधे कंठ से फूट रहें हैं
अब भी
भुतहे भाव भजन--

शिवलिंग,नंदी,नाग पुराना
किंतु झांझ,मंजीरे,ढोलक
चिमटे नये,नया हरबाना
रक्षा सूत्र का तानाबाना

भूखी भक्ति,आस्था अंधी
संस्कार का
रोगी तन मन---

गंग,जमुन,नर्मदा धार में
मावस पूनम खूब नहाय
कितने पुण्य बटोरे
कितने पाप बहाय

कितनी चुनरी,धागे बांधे
अब तक
भरा नहीं दामन---

जीवन बचा हुआ है अभी
एक विकल्प आजमायें
भू का करें बिछावन
नभ को चादर सा ओढें
और सुख से सो जायें

दाई से क्या पेट छुपाना
जब हर
सच है निरावरण-------

"ज्योति खरे"