बुधवार, मई 19, 2021

स्त्री बांधकर रखती है अपनी चुन्नी में

डूबते सूरज को
उठा लाया हूं
तुम्हें सौंपने
कि अभी बाकी है
घुप्प अंधेरों से लड़ना

कि अभी बाकी है
नफरतों की चादरों से ढंकी
प्रेम के ख़िलाफ़ हो रही
साजिशों का
पर्दाफाश करना
काली करतूतों की
काली किताब का 
ख़ाक होना

कि अभी बाकी है 
लड़कियों का 
उजली सलवार कमीज़ पहनकर
दिलेरी से
नंगों की नंगई को
चीरते निकल जाना

कि अभी बाकी है
धरती पर
स्त्री की सुंदरता का
सुनहरी किरणों से
सुनहरी व्याख्या लिखना

कि अभी बहुत कुछ बाकी ना रहे 
इसलिए 
तुम्हारी लहराती चुन्नी में
रख रहा हूं सूरज
मुझे मालूम है
तुम फेर कर 
प्रेममयी उंगलियां
बस्तियों की हर चौखट पर
भेजती रहोगी 
सुबह का सवेरा
और
सूरज से कहोगी
कि दिलेरी से ऊगो
मैं तुम्हारे साथ हूँ

स्त्री के कारण ही
जीवित होता है
नया सृजन
कायम रहती है दुनियां
क्योंकि स्त्री 
अपनी चुन्नी में
बांधकर रखती है हरदम
निःस्वार्थ प्रेम -----

◆ज्योति खरे