शनिवार, अप्रैल 03, 2021

प्रेम के गणित में

प्रेम के गणित में
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गांव के
इकलौते 
तालाब के किनारे बैठकर
जब तुम मेरा नाम लेकर
फेंकते थे कंकड़
पानी की हिलोरों के संग
डूब जाया करती थी 
मैं
बहुत गहरे तक
तुम्हारे साथ
तुम्हारे भीतर ----

सहेजकर रखे 
खतों को पढ़कर
हिसाब-किताब करते समय
कहते थे
तुम्हारी तरह
चंदन से महकते हैं
तुम्हारे शब्द ----

आज जब
यथार्थ की जमीन पर
ध्यान की मुद्रा में 
बैठती हूं तो
शून्य में
लापता हो जाते हैं
प्रेम के सारे अहसास

प्रेम के गणित में
कितने कमजोर थे 
अपन दोनों ----

"ज्योति खरे"