रविवार, अक्तूबर 13, 2019

तुम्हारी मुठ्ठी में कैद है तुम्हारा चांद

तुम्हारी मुठ्ठी में कैद है-तुम्हारा चाँद
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चाँद को तो
उसी दिन रख दिया था
तुम्हारी हथेली पर
जिस दिन
मेरे आवारापन को
स्वीकारा था तुमने

सूरज से चमकते तुम्हारे गालों पर
पपड़ाए होंठों पर
रख दिये थे मैने
कई कई चाँद

चाँद को तो
उसी दिन रख दिया था
तुम्हारी हथेली पर
जिस दिन
विरोधों के बावजूद
ओढ़ ली थी तुमने
उधारी में खरीदी
मेरे अस्तित्व की चुनरी

और अब
क्यों देखती हो
प्रेम के आँगन में
खड़ी होकर
आटे की चलनी से
चाँद----

तुम्हारी मुट्ठी में तो कैद है
तुम्हारा अपना चाँद----

"ज्योति खरे