बुधवार, सितंबर 10, 2014

प्रेम के गणित में -----

 
 
गांव के
इकलौते तालाब के किनारे बैठकर
जब तुम मेरा नाम लेकर
फेंकते थे कंकड़
पानी की हिलोरों के संग
डूब जाया करती थी मैं
बहुत गहरे तक
तुम्हारे साथ ----
 
सहेजकर रखे मेरे खतों का 
हिसाब-किताब करते समय
कहते थे
तुम्हारी तरह
चंदन से महकते हैं
तुम्हारे शब्द ----
 
आज जब
यथार्थ की जमीन पर
ध्यान की मुद्रा में बैठती हूं तो
शून्य में
लापता हो जाते हैं सारे अहसास
 
प्रेम के गणित में
बहुत कमजोर थे अपन दोनों ----

                                "ज्योति खरे"

चित्र- गूगल से साभार