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शुक्रवार, मार्च 26, 2021

वृद्धाश्रम में होली

वृद्धाश्रम में होली
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बूढ़े दरख्तों में
अपने पांव में खड़े रहने की 
जब तक ताकत थी
टहनियों में भरकर रंग
चमकाते रहे पत्तियां और फूल
मौसम के मक्कार रवैयों ने
जब से टहनियों को
तोड़ना शुरू किया है
समय रंगहीन हो गया

रंगहीन होते इस समय में
सुख के चमकीले रंगों से
डरे बूढ़े दरख़्त
कटने की पीड़ा को 
मुठ्ठी में बांधें
टहलते रहते हैं
वृद्धाश्रम की
सुखी घास पर

इसबार
बूढ़े दरख्तों के चिपके गालों पर
चिंतित माथों पर
लगाना है गुलाल
खिलाना है स्नेह से पगी खुरमी
मुस्कान से भरी गुझिया 

एक दिन
हमें भी बूढ़े होना है---

"ज्योति खरे"