बुधवार, सितंबर 16, 2020

कैसी हो मेरी "अपना"

कैसी हो मेरी "अपना"
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बहुत बरस तक
अक्सर मिलते थे
बगीचे में
बैठकर छूते थे 
एक दूसरे की कल्पनाएं
टटोलते थे एक दूसरे के दिलों में बसा प्रेम

आज भी उस बगीचे में जाकर बैठता हूं
मुठ्ठियों में भरकर
चूमता हूं यादों को
सोचता हूँ
जब तुम
हरसिंगार के पेड़ के नीचे से 
गुजकर आती थीं
औऱ बैठ जाती थी 
चीप के टुकड़े पर
मैँ भी बैठ जाता था तुम्हारे करीब
निकालता था फंसे हुए हरसिंगार के फूल
तुम्हारे बालों से
इस बहाने
छू लेता था तुम्हें
डूब जाता था
तुम्हारी आंखों के
मीठे पानी में

अब तुम दूर हो
बदल गयी हैं
भीतर की बेचैनियां
पहले मिलने की होती थी
अब यादों में होती हैं

भागती हुई यादों से 
कहता हूं रुको
मेरी "अपना"
आती होगी
उसके बालों में फंसे
हरसिंगार के फूल निकालना हैं
जिन्हें मैँ जतन से
सहेजकर रखता हूँ

तुम अब नहीं ही मेरे पास
फिर भी 
मेरे पास हो
तुम्हारे होने का अहसास
थोड़े से लम्हों के लिए ही सही
प्रेम को जिंदा रखने का
सलीका तो सिखाता है
 
कैसी हो मेरी "अपना"

"ज्योति खरे"

सोमवार, सितंबर 14, 2020

माय डियर लच्छू

माय डियर लच्छू
गुडमार्निंग
आज हिंदी दिवस है
वोकल कार्ड को साफ कर
मतलब गले से
अंग्रेजी को बाहर निकाल कर
रख दे कहीं गिरवी
और गुटक ले हिंदी
क्योंकि, आज अपन को 
ओनली हिंदी में टाक करना है

राजभाषा डिपार्टमेंट ने 
नोटिस सर्व किया है 
आज सभी इंडियन
आल वर्क हिंदी में करेंगे
ईवन 
टॉक भी हिंदी में करेंगे
अपनी अपनी कॉलोनियों की
रोड़ों में
मार्च पास्ट करेंगे
औऱ
गांव गांव
मीटिंग करेंगे
क्रिएटिव वर्क की
क्लास लगाएंगे
जिससे आत्मनिर्भरता 
औऱ डिजिटल इंडिया का
निर्माण होगा

सभी अपनी अपनी
प्रोग्रेस रिपोर्ट के साथ 
क्लासिक फोटोग्राफ 
मंत्रालय को 
सीधे सेंड करेंगे
फिर दिनभर
ट्विटर हेंडिल पर
इनको 
ट्वीट किया जाएगा

यह प्रोग्रेस रिपोर्ट 
विश्व में सर्कुलेट की जाएगी 
जिससे "ओपन द डोर " 
नीति के अंतर्गत 
विकासशील राष्ट्रों की श्रेणी में 
"एन्ट्री" पाने की 
"कन्फर्म" दावेदारी होगी

माय डियर लच्छू
यह भी सुना है
प्रेस क्लब में 
"फ्रीडम फ़ॉर हिंदी" का 
अनाउंस होगा  

अंत में
राजभाषा ऑफिसर
अंग्रेजी वाइन के साथ
देशी चखना खायेंगे

पर डियर लच्छू
अपन तो 
कड़की के दौर से गुजर रहे हैं
विदेशी कहाँ खरीद पाएंगे
अपन तो अपनी 
"ओरिजनल्टी" को ही
"फालो" करेंगे
कलारी में बैठकर 
देशी मदिरा के साथ
पॉपकार्न खायेंगे

तो फिर मिलते हैं
देशी कलारी में
वहीं बैठकर
हिंदुस्तान की चर्चा करेंगे----

"ज्योति खरे"

शुक्रवार, सितंबर 11, 2020

प्रेम

प्रेम
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मैंने जब जब प्रेम को
हथेलियों में रखकर
खास कशीदाकारी से
सँवारने की कोशिश की
प्रेम
हथेलियों से फिसलकर
गिर जाता है
औऱ मैं फिर से
खाली हाँथ लिए
छत के कोने मैँ बैठ जाती हूँ
चांद से बतियाने 

रतजगे सी जिंदगी में
सपनों का आना भी
कम होता है
जब भी आतें हैं
लिपट जाती हूँ
सपनों की छाती से
ओढ़ लेती हूं
आसमानी चादर

चांद 
एक तुम ही हो
जो कभी पूरे 
कभी अधूरे 
दिखते हो
मिलते हो

सरक कर चांद 
उतर आया छत पर
रात भर 
सुनता रहा 
औऱ नापता रहा
सपनों से प्रेम की दूरी

फेरता रहा माथे पर उंगलियां
सपनों में उड़ा जाता है
प्रेम में बंधा जाता है---

"ज्योति खरे"